Last Updated: Tuesday, January 24, 2012, 05:59
नई दिल्ली : विशेषज्ञों का मानना है कि आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी भारतीय लोकतंत्र गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है जिसे दूर करने के लिए चुनाव आयोग को और ज्यादा ताकतवर बनाने के साथ ही चुनाव प्रणाली में आमूल चूल बदलाव की जरूरत है।
सामाजिक चिंतक गोविंदाचार्य ने कहा, ‘शासन व्यवस्थाओं में न्यूनतम दोषपूर्ण पद्धति लोकतंत्र है। जिस तरह से शीशा साफ नहीं होने पर तस्वीर स्पष्ट नहीं आती है, उसी तरह से चुनाव व्यवस्था दोषपूर्ण होने पर चयन सही नहीं हो पाता है और दुर्दांत अपराधी भी सांसद बन जाते हैं।’ गोविंदाचार्य ने कहा, ‘भारतीय लोकतंत्र के पहले 15 साल में मूल्यों का ज्ञान रहा लेकिन 1965 से 1980 के बीच ‘आया राम गया राम’ का दौर शुरू हुआ और सत्ता में बदलाव आया । इसी तरह वर्ष 1980 से 1995 के बीच बाहुबलियों की संख्या बढ़ी। 1995 से 2010 तक करेला नीम चढ़ा की तर्ज पर धनबल का प्रभाव बढ़ा। जनतंत्र को अभिव्यक्त करने वाला लोकतंत्र सत्ताबल, धनबल, बाहुबल की बीमारियों का शिकार बन गया जिसमें गंभीर रणनीतिक सुधार की जरूरत है। इसी तरह संसदीय जनतंत्र में दलों की कार्यशैली को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना होगा। आज सभी दल अपराध, भ्रष्टाचार, अवसरवादिता, दल बदल और वंशवाद के शिकार हो गये हैं। इसी कारण जनतंत्रात्मक साधनों की बजाय मुद्दों और मूल्यों की राजनीति सड़क और चौराहों पर हो रही है।’
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रो. तुलसी राम का मानना है कि अन्य देशों के मुकाबले अगर देखें तो भारत का लोकतंत्र परिपक्व है लेकिन भारत में तीन विचारधाराओं जातिगत, संप्रदाय और क्षेत्र के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण हो रहा है। इसमें असली मुद्दे घायब हो गए हैं । प्रो. तुलसी ने कहा, ‘आज भारतीय जनतांत्रिक प्रणाली ‘जातीय जनतंत्र’ में बदल गयी है। इसमें बदलाव की सख्त जरूरत है।’ उन्होंने सुझाव दिया, ‘इस जातीय जनतंत्र को बदलने के लिए 12वीं कक्षा तक शिक्षा में बदलाव लाना होगा।’
गोविंदाचार्य ने कहा कि चुनाव प्रणाली में व्यापक सुधार की जरूरत है। इसमें अनिवार्य मतदान, नकार वोट, जनमत संग्रह की वैधानिक व्यवस्था सरीखे नये कदम उठाने पड़ेंगे। इसके अलावा चुनाव आयोग को और ज्यादा ताकतवर बनाये जाने की जरूरत है और सारे चुनाव एक साथ कराये जाए।' प्रख्यात संविधानविद सुभाष कश्यप का मानना है कि चुनाव में अनिवार्य मतदान की व्यवस्था किया जाना अलोकतांत्रिक और अव्यवहारिक होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि मतदान को संविधान में एक ‘मूल नागरिक दायित्व’ बना दिया जाना चाहिए। कश्यप ने कहा, ‘वोट देने वाले लोगों को प्रोत्साहन दिया जाए। इसके अलावा पासपोर्ट, राशन कार्ड चाहने वालों को मतदान प्रमाण पत्र दिखाने पर छूट दी जाए।’
गौरतलब है कि भारतीय चुनाव आयोग मतदाताओं को जोड़ने और मतदान के महत्व को बताने के लिए हर वर्ष 25 जनवरी के दिन को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाता है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, January 24, 2012, 11:29