दलों ने सरकार से पूछा-यमुना इतनी मैली क्यों

दलों ने सरकार से पूछा-यमुना इतनी मैली क्यों

दलों ने सरकार से पूछा-यमुना इतनी मैली क्योंनई दिल्ली : यमुना नदी में भारी प्रदूषण पर राज्यसभा में सोमवार को विभिन्न दलों के सदस्यों द्वारा जतायी गयी गहरी चिंता के बीच मुख्य विपक्षी दल ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि राजधानी में इस नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए करोड़ रुपए खर्च किये जाने के बावजूद अपेक्षित परिणाम क्यों सामने नहीं आये।

गंगा एवं यमुना सहित देश की विभिन्न नदियों में प्रदूषण मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि नदियों के बिना भारत की कल्पना करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि नदियों में प्रदूषण केवल पेयजल या सिंचाई को ही प्रभावित नहीं करता है। यह हमारी आस्था, संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत से जुड़ा मुद्दा है।

उन्होंने यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए वृदांवन के रमेश बाबा और महंत जयकिशन दास की अगुवाई में निकाली जा रही ‘यमुना बचाओ यात्रा’ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर लाखों लोग उद्वेलित हैं। उन्होंने कहा कि यमुना के बिना क्या कृष्ण की नगरी मथुरा एवं वृंदावन की कल्पना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मथुरा-वृदांवन में यमुना इतनी अधिक प्रदूषित हो गयी है कि उसके जल से आचमन भी नहीं किया जा सकता है।

प्रसाद ने कहा कि यमुना के प्रदूषण के लिए दिल्ली से नदी में मिलने वाला औद्योगिक कचरा और शहर का सीवेज जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि यमुना दिल्ली के मात्र 22 किलोमीटर हिस्से से गुजरती है लेकिन इसका 70 प्रतिशत प्रदूषण दिल्ली में किया जाता है।

रविशंकर प्रसाद कहा कि सरकार ने यमुना एक्शन प्लान के नाम पर अभी तक 5500 करोड़ रुपए खर्च किये हैं जिसमें से 2500 करोड़ रुपए तो सिर्फ दिल्ली में खर्च किये गये हैं। लेकिन इसका आज तक कोई नतीजा नहीं निकला है क्योंकि यमुना अभी तक एक गंदा नाला बनी हुई है।

उन्होंने कहा कि गंगा नदी की स्थिति भी उतनी ही बदतर है। कानपुर, प्रयाग, काशी या पटना कहीं भी गंगा का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि देश की 40 करोड़ आबादी गंगा के तट पर बसे शहरों में रहती है और 20 लाख लोग रोज इसमें स्नान करते हैं। लेकिन गंगा नदी के प्रदूषण के कारण लोगों को त्वचा रोग से लेकर कैंसर तक तमाम रोग हो रहे हैं।

भाजपा नेता ने कहा कि गंगा एक्शन प्लान प्रथम और द्वितीय पर करोड़ों रूपये व्यय किये जा चुके हैं। वाराणसी सहित कई जगहों पर जलमल शोधन संयंत्र लगाये गये हैं। लेकिन व्यवहार में कोई परिणाम नहीं निकल रहा क्योंकि या तो ऐसे संयंत्र चलते ही नहीं और यदि कुछ जगहों पर चल भी रहे हैं तो साफ किया गया पानी फिर से प्रदूषित जल में मिल जाता है।

उन्होंने कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने पर अभी तक जो धनराशि खर्च की गयी या जो प्रयास किये गये, उसके अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं निकले। उन्होंने कहा कि सरकार को गंगा एवं यमुना नदी सहित सभी प्रमुख नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाते हुए उनके जल को निर्मल एवं अविरल बनाना चाहिए।

बसपा के एसपी सिंह बघेल ने गंगा यमुना सहित देश की प्रमुख नदियों के प्रदूषण पर चिंता जताते हुए सरकार से सवाल किया कि पिछले 50.60 साल से करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद यमुना गंगा साफ नहीं हुई। उन्होंने प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि सत्ता में दो-दो बार रहने के बावजूद भी उन्होंने इसे प्राथमिकता नहीं दी।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश का जो दोआब क्षेत्र कभी समृद्ध होता था वह आज प्रदूषण से त्रस्त है। उन्होंने कहा कि आज गंगा यमुना विज्ञान की दृष्टि से प्रदूषित होने के अलावा आध्यात्म की दृष्टि से भी प्रदूषित हो गया है। उन्होंने अपर्याप्त सीवेज संयंत्र के साथ ही उनके ठीक से काम नहीं करने का भी मुद्दा उठाया।

माकपा के प्रशांत चटर्जी ने कहा कि देश की प्रमुख नदियां आज नहाने लायक भी नहीं रह गई हैं। उन्होंने जल प्रदूषण के संदर्भ में कड़ी निगरानी की वकालत करते हुए भूजल स्तर बढ़ाने के प्रयास और पानी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के प्रयास की ओर गंभीरता से ध्यान देने की पेशकश की।

तृणमूल कांग्रेस के विवेक गुप्ता ने भी सरकार से जानना चाहा कि गंगा एक्शन प्लान पर हुए खर्च का सदुपयोग अथवा दुरुपयोग हुआ। उन्होंने नदियों को स्वच्छ बनाने की दिशा में प्रधानमंत्री की ओर से ठोस कदम की अपेक्षा जताते हुए कहा कि गंगा एक्शन प्लान सरकारी फाइलों में गुम होकर रह गया।

जद-यू के शिवानंद तिवारी ने राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि देश में 14 नदियों का जल काफी प्रदूषित हो गया है जिसका मुख्य कारण औद्योगिक कचरा है। उन्होंने देश की विकास नीति को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि औद्योगिक सभ्यता हमें विकास के बजाय विनाश की ओर ले जा रहा है।

बीजद के शशिभूषण बेहरा ने सरकार से जानना चाहा कि इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए उसके पास क्या समयबद्ध कार्यक्रम है और साफ सफाई को सुनिश्चित करने की कौन सी पुख्ता योजना है।

उन्होंने कहा कि करोड़ों रुपए के खर्च के बावजूद नदियों में प्रदूषण की स्थिति जस की तस है। उन्होंने जानना चाहा कि सरकार आम जनता को अपने खर्च पर शुद्ध जल मुहैया करा सकती है।

अन्नाद्रमुक के वी मैत्रेयण ने कहा कि गंगा आज जहरीली नदी बनती जा रही है और सीवेज के 20 प्रतिशत भाग का ही ट्रीटमेंट हो पाता है और बाकी कचरे को सीधा पानी में डाल दिया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है।

तेदेपा के सी एम रमेश ने कहा कि नदियों में डाले जाने वाले 80 फीसदी औद्योगिक कचरों का शुद्धिकरण नहीं होता है और गांवों के गरीब लोग इन्हीं अशुद्ध जल पर निर्भर हैं।

उन्होंने जीडीपी की तरह ही सकल पर्यावरण परियोजना (जीईपी) बनाये जाने की मांग की जिससे प्राकृतिक सेहत की नियमित जांच संभव हो सके। उन्होंने जानना चाहा कि प्रदूषण फैलाने के दोषी पाये गये उद्योगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।

मनोनीत एम एस स्वामीनाथन ने कहा कि नदियों के प्रदूषण को प्रौद्योगिकी और कानूनी विनियमन के जरिये कम किया जा सकता है लेकिन इसके साथ ही सामाजिक जागरुकता और शिक्षा के प्रचार प्रसार की भी इस दिशा में अहम भूमिका है। उन्होंने इस काम में स्थानीय निकायों, शिक्षण संस्थाओं और धार्मिक नेताओं को भी साथ लिये जाने की वकालत की।

शिवसेना के संजय राउत ने गंगा के साथ साथ तमाम नदियों की रक्षा किए जाने की मांग की।

भाजपा के अनिल माधव दवे ने कहा कि सभी नदियों के स्वास्थ्य पर नियमित विचार किये जाने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि अपने संपूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र को मिलाकर नदी एक पूरी इकाई होती है इसलिए नदियों के साथ इन सभी मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता है।

चर्चा में भाजपा के रामा जोइस और तरूण विजय, राजद के रामकृपाल यादव, तेदेपा के सी एम रमेश, अन्नाद्रमुक के वी मैत्रेयण, शिवसेना के संजय राउत, मनोनीत के पाराशरन, कांग्रेस के सैफुद्दीन सोज ने भी भाग लिया। (एजेंसी)

First Published: Monday, March 11, 2013, 20:20

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