Last Updated: Wednesday, January 11, 2012, 06:47
नई दिल्ली : वर्ष 1997 में दिल्ली में हुए विस्फोट के मामले में एक पाकिस्तानी नागरिक को दोषी ठहराए जाने और उसे सुनाई गई मौत की सजा को चुनौती देने वाली उसकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने आज खंडित फैसला सुनाया।
न्यायमूर्ति एच एल दत्तू का विचार था कि नए सिरे से मुकदमा शुरू होना चाहिए क्योंकि आरोपियों ने गवाहों से जिरह नहीं की है, वहीं अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की यह राय नहीं थी। विभाजित फैसले के मद्देनजर मामला प्रधान न्यायाधीश के समक्ष भेजा गया है। निचली अदालत ने 1997 के दिल्ली विस्फोट के मामले में भूमिका को लेकर नवंबर, 2004 में मोहम्मद हुसैन को दोषी ठहराया था और उसे मौत की सजा सुनाई थी। विस्फोट एक ब्लूलाइन बस में हुआ था जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी और 24 लोग घायल हो गए थे।
निचली अदालत ने मामले को ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ करार देते हुए पाकिस्तान के ओकरा में जिंदराखर गांव के रहने वाले हुसैन को मौत की सजा सुनाई थी। अगस्त 2006 में हाईकोर्ट ने मौत की सजा को बरकरार रखा। हुसैन ने फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी। 30 दिसंबर, 1997 को पंजाबी बाग के पास रामपुरा में ब्लूलाइन बस में हुए विस्फोट में 28 लोग घायल हो गये जिनमें चार की अस्पताल में मौत हो गई।
पुलिस ने 21 मार्च, 1998 को हुसैन को गिरफ्तार किया था। शहर की एक अदालत ने हालांकि साक्ष्यों के अभाव में अन्य आरोपियों अब्दुल रहमान, अजहर अहमद और मकसूद अहमद को बरी कर दिया था। वर्ष 1997 में शहर में 22 सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे।
(एजेंसी)
First Published: Wednesday, January 11, 2012, 21:40