Last Updated: Monday, January 23, 2012, 13:32
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एनआरइजीएस) के तहत दिए जाने वाले मजदूरी को विभिन्न राज्यों में दिए जाने वाले न्यूनतम पारिश्रमिक के समकक्ष लाया जाए।
न्यायमूर्ति सिरियक जोसेफ और ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने सोलीसीटर जनरल रोहिंगटन नरीमन से कहा कि वह केंद्र से कहें कि राज्य सरकारों के न्यूनतम पारिश्रमिक को ध्यान में रखकर वह मजदूरी तय करे।
पीठ ने कहा, यह लाभार्थी विधान है तो फिर न्यूनतम मजदूरी और नरेगा कानून के तहत दिए जाने वाले पारिश्रमिक के बीच भेदभाव क्यों। अदालत केंद्र सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।
केंद्र ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी जिसने 23 सितम्बर को कहा था कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत पारिश्रमिक राज्य सरकारों द्वारा कृषि श्रमिकों के लिए तय न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं हो सकती। इसने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार को उन मजदूरों को बकाया भुगतान करना चाहिए जिन्हें कम भुगतान किया गया।
पीठ ने कहा, आप खुद ऐसा क्यों नहीं करते? अधिनियम के तहत मजदूरी तय करने में राज्य द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी पर गौर किया जाए। हालांकि इसने मजदूरों के बकाया भुगतान से संबंधित हाईकोर्ट के आदेश पर आंशिक रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने विभिन्न श्रमिक संगठनों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि केंद्र की याचिका पर वे दो हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करें। केंद्रीय रोजगार योजना के तहत पारिश्रमिक अलग-अलग राज्यों में 118 रुपये से 181 रुपये के बीच है जो छह राज्यों में अधिसूचित न्यूनतम दैनिक मजदूरी से कम है। लेकिन 14 राज्यों में ग्रामीण रोजगार योजना के तहत पारिश्रमिक न्यूनतम मजदूरी से ज्यादा है। (एजेंसी)
First Published: Monday, January 23, 2012, 19:37