Last Updated: Wednesday, December 28, 2011, 15:00
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि निर्दोष माना जाना आरोपी का मौलिक अधिकार है और संदेह के आधार पर उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता, फिर चाहे संदेह कितना भी गहरा हो।
न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, यह अपराध विधिशास्त्र का एक मौलिक सिद्धांत है कि आरोपी के दोषी साबित होने तक वह निर्दोष होता है। साथ ही यह भी निर्धारित है कि संदेह कभी भी सबूत की जगह नहीं ले सकता फिर चाहे वह कितना भी गहरा हो।
अदालत ने उन चार लोगों की दोषसिद्धि को खारिज करते हुए यह आदेश दिया जिन्हें सांप्रदायिक हिंसा के दौरान दो बच्चों सहित तीन लोगों की कथित हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। दिसंबर 1992 के मामले में असम में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान इन पीड़ितों का घर जला दिया गया था।
पीठ ने कहा कि हो सकता है आरोपी ने अपराध किया हो और आरोपी ने अपराध किया है, में काफी अंतर होता है। अभियोजन पक्ष को विश्वसनीय और पक्के सबूतों के आधार पर आरोप साबित करने होते हैं। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, December 28, 2011, 21:04