Last Updated: Saturday, September 8, 2012, 21:08

चेन्नई : न्यायिक सक्रियता को लेकर आगाह करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज कहा कि न्यायिक फैसलों को उन सीमाओं का सम्मान करना चाहिए जो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक दूसरे से अलग करती हैं। 25 जुलाई को राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद राष्ट्रीय राजधानी के बाहर अपनी पहली यात्रा पर आए मुखर्जी ने यह भी कहा कि किसी भी तरह के अतिक्रमण से न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सब कुछ किया जाना चाहिए।
मद्रास हाईकोर्ट के 150 वीं वषर्गांठ समारोह के समापन कार्यक्रम में उन्होंने न्यायपालिका से आत्मावलोकन एवं उसी के साथ स्वयं-सुधार की प्रक्रिया के माध्यम से अपने को नए स्वरूप में ढालने की अपील की। मुखर्जी ने अपने भाषण में न्यायिक जवाबदेही और न्यायाधीशों की नियुक्ति जैसे कानूनी विमर्श के कई मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त की। राष्ट्रपति ने न्यायिक सक्रियता का जिक्र किया और कहा कि न्यायाधीशों ने अभिनव तरीके और सक्रियता से न्याय की सीमा के विस्तार में काफी योगदान दिया है और निर्धनतम लोगों का न्याय की पहुंच कायम की है।
मुखर्जी ने कहा, ‘लेकिन यहां आगाह करना भी जरूरी है। न्यायिक सक्रियता से सत्ता विभाजन के संवैधानिक सिद्धांत कमजोर नहीं हों। न्यायिक फैसलों को उन सीमाओं का सम्मान करना चाहिए जो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक दूसरे से अलग करती है।’’ मामलों के लंबित रहने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय के लिए अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था कर अदालतों को मजबूत किया जाना चाहिए और सरकार इस काम में जुटी है। उन्होंने कहा कि देशभर में अदालतों में रिक्तियों का भरा जाना एक मामला है और संबंधित पक्ष उसे प्राथमिकता के रूप में लें।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमें इस संबंध में जल्दबाजी करनी चाहिए लेकिन गुणवत्ता से समझौता किए बगैर।’ उन्होंने कहा कि न्याय आपूर्ति के लिए राष्ट्रीय मिशन शुरू किया गया है और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृति की उम्र बढ़ाने के लिए संविधान संशोधित किया जा रहा है। अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएं भी तैयार करने की कोशिश चल रही हैं। उन्होंने कहा कि शक्तियों का विभाजन संविधान के मूललक्षणों में एक है जो यह सुनिश्चित करता है कि सरकार का हर अंग अपने दायरे में काम करे और दूसरे के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करे।
मुखर्जी ने कहा, ‘संविधान सर्वोच्च है। विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका उसे लागू करती है और न्यायपालिका उन कानूनों का अंतिम व्याख्याता है। संविधान में किया गया शक्ति संतुलन हर समय बनाए रखा जाना चाहिए।’ राष्ट्रपति ने कहा कि शक्तियों के विभाजन का सिद्धांत संयम का सिद्धांत है। विधायिका और कार्यपालिका की शक्तियों का इस्तेमाल न्यायिक समीक्षा से गुजरता है लेकिन न्यायपालिका की शक्तियों के इस्तेमाल पर नियंत्रण केवल आत्मानुशासन और आत्मसंयम से ही संभव है।
प्रस्तावित न्यायिक जवाबदेही विधेयक पर मौजूदा बहस की पृष्ठभूमि में उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों का मूल्यांकन करना बड़ा नाजुक एवं संवेदनशील विषय है और एक ऐसा मुद्दा है जिसे कई विधिवेत्ताओं ने चिंता की नजर से देखी है। उन्होंने कहा, ‘ऐसा कानून जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उसकी विश्वसनीयता की सुरक्षा एवं संरक्षण की आवश्यकता के साथ सावधानी से संतुलन कायम करता हो, न्यायपालिका के खुद के प्रयासों के लिए एक उपयोगी पूरक है।’ (एजेंसी)
First Published: Saturday, September 8, 2012, 21:08