Last Updated: Friday, September 2, 2011, 04:18
कोलकाता : कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन ने गुरुवार को संसद में महाभियोग का सामना करने वाले पहले न्यायाधीश बनने के अपमान से बचते हुए इस्तीफा दे दिया. 53 वर्षीय न्यायमूर्ति सेन ने लोकसभा में अपने खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव आने से पांच दिन पहले राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को अपना इस्तीफा भेज दिया.
इसके पहले राज्यसभा न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे चुकी है. न्यायमूर्ति सेन ऐसे पहले न्यायाधीश हैं, जिनके खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग की कार्यवाही हुई है. उन्होंने राष्ट्रपति को भेजे पत्र में लिखा है, ‘मैं किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में दोषी नहीं हूं. मेरे खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है कि मैंने असंगत विचार वाला कोई आदेश दिया अथवा ऐसा फैसला दिया या मैंने अपने अधिकारों का इस तरह से दुरुपयोग किया ताकि मेरे परिवार या संबंधी सम्पत्ति एकत्रित कर सकें लेकिन दुख की बाद है कि इसके बावजूद मैं महाभियोग प्रस्ताव का सामना कर रहा हूं.’ उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ निश्चित कार्रवाई की उत्सुकता में उच्च न्यायालय की खंडपीठ के फैसले को भी यह कहते हुए दरकिनार कर दिया गया कि न्यायाधीशों ने उनका पक्ष लिया है.
न्यायमूर्ति सेन ने अपने खिलाफ लगाये गए आरोपों को खारिज करते हुए कहा, ‘मैं किसी ऐसे परिवार से नहीं आता जिसमें न्यायाधीश या राजनीतिक हों.’ उन्होंने सीधे सादे तरीके से कार्य किया और सम्पत्ति एकत्रित करने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा नहीं लिया. उन्होंने इसके बजाय न्यायपालिका और अंतत: देश की सेवा की.
उन्होंने लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार को अलग से लिखे पत्र में कहा, ‘मुझे आश्चर्य है कि क्या मेरा मामला भ्रष्टाचार और उच्च पदों पर बैठे लोगों की ओर से अधिकारों के दुरुपयोग का असली मामला है अथवा न्याय की वेदी पर मुझे केवल इसलिए बलि का बकरा बनाया जा रहा है ताकि देश के समक्ष यह प्रदर्शित किया जा सके कि न्यायपालिका से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कम से कम कुछ तो किया जा रहा है.’
न्यायाधीश ने स्वीकार किया कि 19 वर्ष पहले कनिष्ठ वकील के रूप में हो सकता है कि उन्होंने कोई गलती की हो, लेकिन उन्होंने पूछा कि गलतियां किससे नहीं होती. कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं जिससे गलती न होती हो, लेकिन मैं स्वंय पर एक न्यायाधीश के रूप में बेईमान इरादा रखने के आरोपों को सिरे से खारिज करता हूं.’
न्यायमूर्ति सेन ने कहा, ‘मैंने लोकसभा में नहीं जाने का फैसला किया और इसके बजाए इस्तीफा दे दिया.’ सेन को एक वकील के तौर पर अदालत ने रिसीवर नियुक्त किया था. उन्हें 1983 के एक मामले में 33.23 लाख रुपये की हेरा-फेरी और कलकत्ता की एक अदालत के सामने तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. राज्यसभा में 18 अगस्त को लगभग सात घंटे की लंबी बहस के बाद न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई थी. 245 सदस्यीय सदन में मौजूद 206 सदस्यों में से 189 सदस्यों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था.
यह राज्यसभा के इतिहास में पहला और संसद के इतिहास में दूसरा महाभियोग था. न्यायमूर्ति सेन के इस्तीफे का पत्र मिलने के बाद लोकसभा सचिवालय ने कहा कि इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल से परामर्श लिया जाएगा. लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि वह न्यायमूर्ति सेन के इस्तीफे के बारे में सुन कर आहत हैं और उन्हें लगता है कि न्यायमूर्ति सेन के साथ इंसाफ नहीं हुआ. इसके पहले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी डी दिनाकरन के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए राज्यसभा के सभापति ने एक न्यायिक समिति गठित की थी. उनके खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू हो पाती, इसके पहले ही उन्होंने इस साल 29 जुलाई को इस्तीफा दे दिया.
लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव का पहला मामला मई, 1993 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी रामास्वामी का है. कांग्रेस सदस्यों के मतदान में भाग नहीं लेने के चलते संख्या कम होने के कारण यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका.
First Published: Friday, September 2, 2011, 09:48