Last Updated: Tuesday, November 15, 2011, 14:26

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित मामलों में जमानत नहीं देने की कथित नई प्रवृत्ति की पड़ताल करने का मंगलवार को फैसला किया। यह प्रवृत्ति उस स्थापित न्यायिक आदेश के खिलाफ है जो कहता है, जमानत नियम है और जेल अपवाद।
न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर, न्यायमूर्ति एस एस निज्जर और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की पीठ ने इस विवादास्पद मुद्दे की पड़ताल करने पर सहमति जताई जब वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार और मुकुल रोहतगी ने शिकायत की कि हाल के दिनों में अदालतें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के विपरीत नियमित तौर पर जमानत खारिज कर रही हैं।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के सहायक अशोक कुमार सिन्हा की तरफ से पेश हुए कुमार ने कहा कि आरोपी द्वारा कथित तौर पर किए गए अपराध के लिए न्यूनतम तीन साल का कारावास और अधिकतम सात साल का कारावास होने के बावजूद वह विगत दो वर्षों से जेल में है।
उन्होंने पीठ से कहा कि निचली अदालतें जमानत नहीं दे रही हैं क्योंकि इनमें से कुछ मामले मीडिया के दबाव में हैं और न्यायाधीश अपनी गोपनीय रिपोर्ट को लेकर डरे हुए हैं।
(एजेंसी)
First Published: Tuesday, November 15, 2011, 19:56