भगत सिंह और आजाद के गांव में शहादत का अपमान

भगत सिंह और आजाद के गांव में शहादत का अपमान

ज़ी न्‍यूज ब्‍यूरो

नई दिल्‍ली : शहीदों की सहादत का अपमान देख देश का खून खौल उठा है। चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के गांव में उनकी शहादत का अपमान हुआ, पर सरकार और प्रशासन किसी को भी इसकी तनिक चिंता न थी। ज़ी न्‍यूज ने जब यह सवाल उठाया तो सरकार के पास भी इसका जवाब नहीं था। हालांकि यूपी सरकार ने चंद्रशेखर आजाद की शहादत के सम्‍मान का भरोसा दिलाया है।

सिर्फ 24 साल की उम्र में चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा था और इस फौलादी क्रांतिकार ने मातृभूमि के लिए खुद को कुर्बान कर दिया था। यूपी के उन्‍नाव स्थित आजाद के गांव बदरका में इनकी शहादत का घोर अपमान नजर आया। गांव वालों के अनुसार, दस साल पहले आजाद की स्‍मारक के ठीक सामने शराब का एक ठेका खुला था। कई सरकारें आईं और गई, मगर आजाद की इस मूर्ति को मुधशाला का बोर्ड मुंह चिढ़ाता रहा। राजनीतिक खेमे में इस खबर का जबरदस्‍त असर हुआ और सियासी दलों ने एक सुर से शहीद के साथ हो रहे इस अपमान की निंदा की है।

ज़ी न्‍यूज पर खबर दिखाए जाने के बाद यूपी सरकार ने आजाद के स्‍मारक के पास बने शराब के ठेके को हटाने का आश्‍वासन दिया है।

दूसरी ओर, पंजाब में भगत सिंह के गांव में घोर बदहाली नजर आई। वतन की खातिर भगत सिंह ने 23 साल की उम्र में फांसी के फंदे को चूम लिया था। तीन साल पहले भगत सिंह के गांव खटकड़ कलां की याद सरकार को आई और शहीद भगत सिंह मेमोरियल बनाने का ऐलान किया गया, लेकिन आज तक एक ईंट भी नहीं रखी गई। इस गांव में भगत सिंह के नाम पर एक पार्क था। इसकी बदहाली के चलते आज बच्‍चों को वहां जाने से डर लगता है।

अब इस गांव का अधिकांश आबादी विदेशों में जा बसी है, लेकिन अपने घर में ही बेगाना हो गया है आजादी की जंग में क्रांति का बिगुल फूंकने वाला जुनूनी भगत सिंह। आजादी के मतवाले और उनकी निशानियों को आज भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। आखिर वतन पर मिटने वालों के साथ कब तक हमारे देश में ऐसा सलूक होता रहेगा। कब तक देश की सरकारें सोती रहेंगी। शहादत का मजाक न उड़ें, इसके लिए सरकार को जागना होगा और इस दिशा में समुचित कदम उठाने होंगे।

First Published: Friday, August 17, 2012, 01:40

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