Last Updated: Friday, October 7, 2011, 16:56
नई दिल्ली : वियतनाम के राष्ट्रपति त्रुआंग तान सांग की अगले हफ्ते होने वाली भारत यात्रा के पूर्व कई सुरक्षा विशेषज्ञों और पूर्व राजनयिकों ने दोनों देशों के बीच रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में करीबी रणनीतिक संबंधों की वकालत की है. भारत-वियतनाम सहयोग पर एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए पूर्व विदेश सचिव एम.के. रसगोत्रा ने दोनों देशों के बीच मजबूत ‘सुरक्षा आयामों’ की वकालत की और कहा कि वियतनाम दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण देश है.
पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लीना पोनप्पा ने कहा कि वियतनाम के साथ भारत के संबंध चीन से ज्यादा गहरे हैं और ‘साझी मानसिकता’ पर आधारित हैं. उन्होंने कहा कि भारत के भविष्य के लिए ऊर्जा सुरक्षा अहम है और उर्जा उत्पादन के मामले में वियतनाम महत्वपूर्ण देश है. उन्होंने कहा कि भारत को रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में वियतनाम के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए ये विचार ऐसे समय आए हैं जब दक्षिण चीन सागर में वियतनामी तेल ब्लाकों में भारत द्वारा तेल उत्खनन को लेकर विवाद है और चीनी अधिकारियों ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि यह उनका क्षेत्र है.
भारत और वियतनाम दोनों ने हालांकि इस दावे को खारिज कर दिया है. वियतनाम का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह ब्लाक उसका है. रक्षा विशेषज्ञ सी. राजा मोहन ने दोनों देशों के बीच गहरे रक्षा संबंधों पर जोर देते हुए कहा कि भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण में वृद्धि के साथ असैनिक परमाणु क्षेत्र में भी वियतनाम की मदद कर सकता है. उन्होंने समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग पर विशेष बल दिया.
वक्ताओं का कहना था कि दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के सभी देशों के लिए अहम है और वियतनाम की तटीय सीमा 3100 किलोमीटर लंबी है. राजा मोहन ने कहा कि भारत द्वारा वियतनाम को ब्रह्मोस मिसाइल बेचे जाने की पेशकश पर चीन चिंतित है.
(एजेंसी)
First Published: Friday, October 7, 2011, 22:27