भुल्‍लर मामले में हलफनामा दायर करे केंद्र - Zee News हिंदी

भुल्‍लर मामले में हलफनामा दायर करे केंद्र



नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र से कहा कि वह इसकी वजह बताए कि आतंकी देवेंद्र सिंह भुल्लर की दया याचिका पर फैसला करने में आठ साल का वक्‍त  क्यों लगा. भुल्‍लर को 1993 में एक बम विस्फोट के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसमें नौ लोगों की जान चली गई थी. न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र से 10 अक्टूबर तक हलफनामा दायर कर भुल्लर की दया याचिका पर फैसला लेने में हुए विलंब का कारण स्पष्ट करने को कहा.  भुल्लर ने 2003 में दया याचिका दायर की थी, जिसे 2011 में राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया. शीर्ष कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगते हुए कहा कि हर कोई यह जानना चाहता है कि इन आठ सालों में क्या हुआ.

दिल्ली में दस सितंबर 1993 को हुए बम विस्फोट के मामले में भुल्लर को टाडा अदालत ने उसकी भूमिका के लिए मौत की सजा सुनाई थी. यह बम विस्फोट पूर्व युवक कांग्रेस अध्यक्ष मनिंदरजीत सिंह बिट्टा को निशाना बनाकर किया गया था,  इसमें बिट्टा गंभीर रूप से घायल हो गए थे लेकिन उनके साथ के नौ सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च 2002 को मौत की सजा के खिलाफ भुल्लर की अपील को खारिज कर दिया था. इस पर उसने पुनरीक्षण याचिका दायर की.  इसे भी 17 दिसंबर 2002 को खारिज कर दिया गया. भुल्लर ने तब क्यूरेटिव याचिका दायर की, शीर्ष अदालत ने इसे भी 12 मार्च 2003 को खारिज कर दिया. इस बीच, भुल्लर ने 14 जनवरी 2003 को राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका भी दायर कर दी थी. राष्ट्रपति ने आठ साल बाद इस साल 25 मई को भुल्लर की दया याचिका को खारिज कर दिया.

भुल्लर का इस समय उच्च रक्तचाप, मानसिक विकार और आत्महत्या संबंधी प्रवृत्ति के चलते शाहदरा के इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवयर एंड एलाइड साइंसेज <आईएचबीएएस> में इलाज चल रहा है. शीर्ष अदालत में दायर याचिका में उसकी पत्नी नवनीत कौर ने तर्क दिया है कि राष्ट्रपति के 25 मई के आदेश को खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें समझदारी से काम नहीं लिया गया संबंधित परिस्थितियों पर विचार नहीं किया गया और अनुमानत: यह बाह्य आधार पर किया गया है. उसने यह कहकर अपने पति की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का आग्रह किया है कि उसे फांसी दिया जाना अमानवीय और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा.

कौर ने दावा किया कि भुल्लर अपनी दया याचिका पर फैसले में 5700 से अधिक दिन के विलंब के चलते मानसिक रूप से कमजोर हो गया है. उसने दावा किया कि अंतिम बार जब वह उससे आईएचबीएएस में मिली तो वह खामोश, अंतर्मुखी था तथा उसके मन में बातचीत करने की इच्छा नहीं थी. याचिका में दावा किया गया कि 2003 से ही उसकी स्थिति लगातार बिगड़ रही है. पहले उसने <पत्नी ने> सोचा कि वह <भुल्लर> सिर्फ उच्च रक्तचाप और गठिया से पीड़ित है, लेकिन अब उसे <पत्नी> महसूस होता है कि 2001 में सजा मिलने के बाद से वह <भुल्लर> मानसिक विकार के लक्षणों से ग्रस्त है और उसके मन में आत्महत्या से संबंधित प्रवृत्ति पैदा हो रही है. याचिका में कहा गया है कि मानसिक रोगी कैदी को फांसी दिए जाने को क्रूर और अमानवीय माना जाता है तथा इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निषेध कर दिया जाना चाहिए.

(एजेंसी)

First Published: Wednesday, September 28, 2011, 17:55

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