Last Updated: Monday, February 4, 2013, 00:35

नई दिल्ली : महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा से संबंधित अध्यादेश को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के दो दिन बाद आज राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे मंजूरी दे दी। इस अध्यादेश में बलात्कार के बाद अगर पीड़ित महिला की मौत हो जाती है तो दोषी व्यक्ति को मौत की सजा दी जा सकती है।
गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि राष्ट्रपति ने आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को अध्यादेश के मसौदे को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा था ताकि महिलाओं के खिलाफ अपराध पर अंकुश लगाने के लिए आपराधिक कानूनों में तेजी से संशोधन किए जा सकें। यह अध्यादेश संसद के बजट सत्र के शुरू होने के तीन सप्ताह से भी कम समय पहले लाया गया है।
न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों के आधार लाए गए इस अध्यादेश में ‘बलात्कार’ शब्द की बजाय ‘यौन उत्पीड़न’ शब्द का प्रयोग किया गया है ताकि महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के यौन अपराधों की परिभाषा को विस्तार दिया जा सके।
यह अध्यादेश दिसंबर में दिल्ली में 23 वर्षीय लड़की से सामूहिक बलात्कार और बर्बर हमले की पृष्ठभूमि में लाया जा रहा है। अध्यादेश में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड संहिता प्रक्रिया (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन का प्रावधान है। इसमें महिलाओं का पीछा करने, ताक-झांक, तेजाब फेंककर हमला करने, अभद्र भाव भंगिमा यथा शब्दों और अनुचित तरीके से स्पर्श करने को लेकर सजा बढ़ाने का प्रावधान है। साथ ही ‘वैवाहिक बलात्कार’ को भी इसके दायरे में लाया गया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्मा समिति की सिफारिशों से आगे जाकर बलात्कार के वैसे मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया है जिसमें पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से कोमा में चली जाती है।
सूत्रों ने बताया कि इस तरह के मामलों में न्यूनतम 20 साल के कारावास की सजा का प्रावधान होगा जिसे दोषी के आजीवन कारावास या मृत्यु तक बढ़ाया जा सकता है। इस संबंध में विशेषाधिकार अदालत के पास होगा। दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड के बाद बलात्कारियों को मौत की सजा देने की जोरदार मांग की गई थी लेकिन वर्मा समिति ने इसका समर्थन नहीं किया था।
सरकार ने वर्मा समिति की उस सिफारिश को अस्वीकार कर दिया है जिसमें कहा गया था कि सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून के तहत अगर कोई सशस्त्र बल कर्मी महिलाओं के खिलाफ अपराध का आरोपी होगा तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। कानून को महिलाओं के अनुकूल बनाने के प्रयास के तहत अध्यादेश में यौन अपराध की पीड़िता का बयान सिर्फ महिला पुलिस अधिकारी के लेने का सुझाव दिया गया है।
18 साल से कम उम्र की महिलाओं का आरोपी के साथ आमना-सामना नहीं कराया जाएगा लेकिन जिरह के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। पुलिस अधिकारियों के समक्ष गवाहों की व्यक्तिगत पेशी नहीं होगी। आईपीसी सजा को कम करने की अदालत को अनुमति देता है। अध्यादेश में सजा को कम करने की अदालत की शक्ति को छीन लिया गया है।
अगर कोई सरकारी सेवक यौन अपराध के मामले में सहयोग नहीं करता है या कानूनी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाता है तो उसे कारावास की सजा देने की सिफारिश की गई है। समिति ने पांच साल के कारावास की सिफारिश की थी।
अध्यादेश में कहा गया है कि अगर तेजाब हमले का सामना कर रही महिला आत्मरक्षा में आरोपी की हत्या कर देती है तो उसे आत्मरक्षा के अधिकार के तहत सुरक्षा मिलेगी। तेजाब हमले की शिकार महिलाओं को कम से कम इलाज पर आए खर्च जितना मुआवजा देने की समिति की सिफारिश सरकार ने स्वीकार नहीं की है।
इस अध्यादेश को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया आई है। विपक्षी भाजपा ने जहां इसका स्वागत किया है वहीं माकपा तथा कई अन्य महिला समूहों ने यह कहते हुए विरोध किया है कि सरकार ने वर्मा समिति की सिफारिशों के साथ अन्याय किया है।
जाने माने महिला संगठनों ने महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों पर अध्यादेश को सरकार में जनता के भरोसे के साथ पूर्ण विश्वासघात करार दिया और राष्ट्रपति से इस पर हस्ताक्षर नहीं करने की अपील की थी। महिला अधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा, यह अध्यादेश जनता के साथ विश्वासघात है। सरकार अध्यादेश को आपात उपाय के रूप में प्रस्तावित करने एवं पारदर्शिता नहीं दिखाने को लेकर हम भौंचक्के हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को कडे दंड का प्रावधान करने वाले अध्यादेश का भाजपा ने जहां स्वागत किया वहीं माकपा और महिलाओं के कई संगठनों ने विरोध करते हुए आरोप लगाया कि सरकार ने न्यायमूर्ति वर्मा समिति के सुझावों के साथ अन्याय किया है।
भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उनकी पार्टी कडे कानूनों का समर्थन करती है। संसद में इस संबंध में हम अपना नजरिया विस्तार से रखेंगे। महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रभावशाली कानून होने चाहिए लेकिन अच्छी पोलिसिंग और शासन भी काफी महत्वपूर्ण है।
प्रसाद ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध से निपटने के लिए सभी प्रभावशाली कदमों का पार्टी समर्थन करती है। उन्होंने कहा, बलात्कार की शिकार महिला की मौत या कोमा जैसी स्थिति में जाने पर अधिकतम मौत की सजा के प्रावधान सहित सभी प्रभावशाली उपायों का भाजपा सिद्धांत रूप से समर्थन करती है। दूसरी ओर माकपा ने आरोप लगाया कि वर्मा समिति की सिफारिशों के साथ सरकार ने ‘नाइंसाफी’ की है और इसपर जारी अध्यादेश सभी लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है।
‘‘प्रक्रियागत और ठोस आधारों’’ पर अध्यादेश को खारिज करते हुए माकपा ने कहा, जब संसद सत्र शुरू होने में तीन हफ्ते बचे हैं ऐसे में अध्यादेश जारी करना लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है। माकपा ने कहा कि अध्यादेश ने वर्मा समिति की कई सिफारिशों को खारिज कर दिया है जो कर्तव्य में शिथिलता बरतने के दोषी लोक सेवकों की सजा में इजाफा करने, तेजाब हमले के पीड़ितों के मुआवजे की राशि बढ़ाने और ऐसे मामले के दोषियों की सजा बढ़ाने जैसे मुद्दों से जुड़े थे। अन्य सुझावों के बारे में भी सरकार ने ‘‘काफी चयनात्मक’’ रवैया अपनाया। अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन (एडवा) ने भी सिफारिशों के प्रति सरकार के कथित चयनात्मक एवं मनमाने रवैये पर आपत्ति जतायी।
पूर्व आईपीएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता किरण बेदी ने भी महिलओं के खिलाफ अपराध के मद्देनजर आपराधिक कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश का स्वागत किया। लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार ने चुनिंदा आधार पर सुझावों को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि यह शुरूआत है लेकिन अभी लंबी दूरी तय करनी है। किशोर की उम्र के बारे में बेदी ने कहा कि सजा तय करते समय अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखा जाना चाहिए न कि आरोपी की उम्र को।
First Published: Sunday, February 3, 2013, 17:06