Last Updated: Tuesday, April 23, 2013, 09:52

नई दिल्ली : दिल्ली के चर्चित सामूहिक बलात्कार मामले के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध से निबटने को लेकर कड़े कानून का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष रहे पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे एस वर्मा का कल रात यहां निधन हो गया। आज उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। गुडगांव के मेदांता अस्पताल के डाक्टर यातिन मेहता ने कहा कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने आज रात साढे नौ बजे अंतिम सांस ली। उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। वह 80 वर्ष के थे।
मेहता ने कहा, ‘‘उन्हें शुक्रवार को यकृत काम नहीं करने और पेट से रक्तस्राव होने की स्थिति में भर्ती किया गया था।’’ न्यायमूर्ति वर्मा 25 मार्च 1997 से 18 जनवरी 1998 को सेवानिवृत्ति तक भारत के 27वें प्रधान न्यायाधीश रहे थे। न्यायमूर्ति वर्मा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्होंने जून 1989 में शीर्ष अदालत के न्यायाधीश बनने के बाद करीब 470 मामलों की सुनवाई की।
उन्होंने 16 दिसंबर 2012 को 23 वर्षीय एक पैरामेडिकल छात्रा के साथ बर्बर सामूहिक बलात्कार के बाद मजबूत बलात्कार विरोधी कानून के लिए सरकार को सिफारिशें देने वाली समिति की अध्यक्षता की थी। सरकार ने इस समिति की ज्यादातर सिफारिशें मान ली थीं। इस समिति में गोपाल सुब्रमण्यम और लीला सेठ भी शामिल थे।
सरकार ने इन सिफारिशों के आधार पर अध्यादेश जारी किया था और इस साल बजट सत्र के पहले चरण में संसद में बलात्कार विरोधी कानून पारित हुआ था। वर्मा के निधन पर दुख प्रकट करते हुए चर्चित कानून विशेषज्ञ सोली सोराबजी ने कहा कि वह सवालों से परे ईमानदारी वाले शख्स थे और वह हमेशा अच्छे सिद्धांत का समर्थन करते थे।
वर्मा वर्ष 1994 की उस नौ न्यायाधीशों की पीठ में शामिल थे जिसने कर्नाटक में संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने से जुड़े एसआर बोम्मई मामले पर सुनवाई की थी। अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रपति के आदेश को संसद की मंजूरी के बाद ही लागू किया जा सकता है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, April 23, 2013, 09:52