Last Updated: Thursday, April 11, 2013, 21:18

नई दिल्ली : मृत्यु दंड के फैसले पर अमल करने में विलंब के आधार पर मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने के सवाल पर उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को अपना निर्णय सुनाएगा।
न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर पिछले साल 19 अप्रैल को खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के आतंकी देविन्दरपाल सिंह भुल्लर के परिवार की याचिका पर सुनवाई पूरी की थी। उम्मीद है कि दया याचिकाओं के निबटारे के लिये समयावधि निर्धारित करने के गैर सरकारी संगठन के अनुरोध पर भी न्यायालय अपनी व्यवस्था दे सकता है।
शीर्ष अदालत के निर्णय का मौत की सजा पाने वाले अनेक मुजरिमों पर असर पड़ सकता है। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के जुर्म में मृत्यु दंड पाने वाले मुजरिम भी शामिल हैं। ये सभी चाहते हैं कि दया याचिकाओं के निबटारे में विलंब के आधार पर उनकी सजा को उम्र कैद में तब्दील किया जाए। भुल्लर के मामले में यह दलील दी गई थी कि अत्यधिक लंबे समय तक काल कोठरी में मौत की सजा की बाट जोहना क्रूरता है और इससे संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होता है। भुल्लर को सितंबर, 1993 में बम विस्फोट के सिलसिले में मौत की सजा सुनाई गई थी। इस विस्फोट में नौ व्यक्ति मारे गये थे।
उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च 2002 को भुल्लर की अपील खारिज करते हुये उसकी मौत की सजा बरकरार रखी थी। न्यायालय ने भुल्लर की पुनर्विचार याचिका 17 दिसंबर, 2002 को और फिर 12 मार्च, 2003 को उसकी सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी थी। इस बीच, भुल्लर ने राष्ट्रपति के समक्ष 14 जनवरी, 2003 को दया याचिका दायर की थी। राष्ट्रपति ने आठ साल बाद पिछले साल 25 मई को उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी। (एजेंसी)
First Published: Thursday, April 11, 2013, 21:18