Last Updated: Sunday, November 25, 2012, 15:21

नई दिल्ली : मुस्लिम नेता सैयद शहाबुद्दीन की ओर से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के रुख में बदलाव नजर आने और माफी की शर्त से जुड़ा ‘खुला पत्र’ लिखे जाने को उस संयुक्त समिति में शामिल प्रमुख संगठनों ने खारिज कर दिया है जिसके संयोजक की हैसियत से उन्होंने पत्र लिखा था।
दस से अधिक संगठनों वाली ‘ज्वाइंट कमेटी ऑफ मुस्लिम आर्गनाइजेशंस फॉर इम्पावरमेंट’ (जेसीएमओई) में शामिल जमीयत उलेमा-ए-हिंद, जमात-ए-इस्लामी हिंद और मरकज जमीयत अहले हदीस ने पत्र को खारिज करने के साथ ही इसे शहाबुद्दीन की निजी राय करार दिया है।
दूसरी ओर (जेसीएमओई) के संयोजक शहाबुद्दीन ने फिर दोहराया है कि मोदी के 2002 के दंगों के लिए सार्वजनिक माफी मांगने और दंगा पीडितों के कल्याण के लिए कारगर कदम उठाने की स्थिति में मुसलमानों के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री की छवि पर संपूर्ण रूप से असर पड़ेगा।
शहाबुद्दीन ने बातचीत में कहा, ‘हमने मोदी को जो खुला पत्र लिखा है उसमें नौ बातें की गई हैं। इन पर मोदी सही ढंग से अमल करते हैं तो उनकी छवि पर संपूर्ण रूप से असर जरूर पड़ेगा।’ पत्र में मोदी से 2002 के दंगों के लिए सार्वजनिक माफी और दुख जताने, पीड़ित परिवारों को 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों के बराबर मुआवजा देने तथा आगामी विधानसभा चुनाव में कम से कम 20 फीसदी सीटों पर मुसलमानों को टिकट देने की बात प्रमुख रूप से की गई है।
पत्र में यह भी कहा गया था कि मुसलमानों को मोदी के रुख में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा, ‘हमें इस पत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस पत्र को लिखने को लेकर हमसे कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। हमारा मानना है कि मोदी के लिए कोई माफी नहीं हो सकती। हम 2002 के लिए मोदी को जिम्मेदार मानते हैं।’
मुस्लिम संगठनों की इस संयुक्त समिति में शामिल जमात-ए-इस्लामी हिंद ने भी इस पत्र को खारिज करते हुए इसे शहाबुद्दीन की निजी राय करार दिया है। जमात के सचिव इंजीनियर सलीम ने कहा, ‘इस पत्र के बारे में हमसे कोई बात नहीं की गई है। यह शहाबुद्दीन की निजी राय है। पत्र में की बातों को हम पूरी तरह से खारिज करते हैं। इस बारे में शहाबुद्दीन से बात की जाएगी।’ समिति में शामिल एक और प्रमुख संगठन ‘मरकजी जमीयत अहले हदीस’ के महासचवि असगर इमाम सलफी ने भी इस पत्र को लेकर अनभिज्ञता जाहिर की है।
उधर, पूर्व आईएफएस अधिकारी शहाबुद्दीन ने कहा, ‘मैंने पत्र को लेकर समिति के सदस्यों के साथ बातचीत नहीं की। मुझे अधिकार दिया गया है और मैंने इसी के तहत बतौर संयोजक यह पत्र लिखा।’ यह पूछे जाने पर कि चुनाव से पहले मोदी को यह खुला पत्र लिखने की जरूरत क्यों पड़ी, तो शहाबुद्दीन ने कहा, ‘मीडिया में ऐसी खबरें आ रही थीं कि मुसलमानों का उच्च वर्ग मोदी के साथ जुड़ रहा है। ऐसे में हम मोदी को बताना चाहते थे कि मुसलमानों का बड़ा तबका उनके साथ नहीं है। इसीलिए उन्हें पत्र लिखा गया।’
इस सवाल पर कि माफी मांगने से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर मुस्लिम समुदाय के बीच मोदी की स्वीकार्यकता हो जाएगी, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं मालूम प्रधानमंत्री के तौर पर लोग उन्हें स्वीकार करेंगे या नहीं। इतना जरूर है कि उनकी छवि पर असर जरूर पड़ेगा।’ (एजेंसी)
First Published: Sunday, November 25, 2012, 11:21