Last Updated: Monday, November 5, 2012, 17:23

नई दिल्ली : उच्च शिक्षा राज्य मंत्री शशि थरूर ने आज यहां कहा कि भारतीय कंपनियों की जरूरत पूरी करने के लिए विश्वविद्यालय की मौजूदा प्रणाली से ‘सुशिक्षित’ स्नातक नहीं मिल पा रहे हैं जिससे कंपनियों को प्रशिक्षण के बहाने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में घुसने का मौका मिल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अतीत में भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति समय के मुताबिक नहीं रही।
थरूर ने कहा ‘बड़ी समस्या यह है कि हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति पहले भी समय के मुताबिक नहीं रही। पश्चिम एशिया और चीन विदेशी विश्वविद्यालयों को लुभाने के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं ताकि वे उनके देशों में अपने परिसर स्थापित करें जबकि भारत ने हालिया वषरें में ही कई अकादमिक निवेदनों को खारिज कर दिया।’ दो दिवसीय उच्च शिक्षा सम्मेलन में थरूर ने कहा ‘कंपनियां प्रशिक्षण के बहाने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में घुस रही हैं। हमारी विश्वविद्यालय प्रणाली भारतीय कंपनियों की आज की जरूरत पूरी करने के लिए सुशिक्षित स्नातक नहीं दे पा रही है।
मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री ने कहा कि अगर देश में ही अच्छे उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित हों तो कई भारतीय छात्रों को अध्ययन के लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं होगी। ‘हम सुधार के हमारे एजेंडे को फिर से पटरी पर लाने के लिए काम करेंगे।’ थरूर ने कहा कि विभिन्न विश्वविद्यालयों, आईआईटी तथा अन्य प्रौद्योगिकी संस्थानों में विज्ञान जैसे विषयों में शोध के लिए केंद्र स्थापित करने और नवोन्मेषी केंद्र जैसे 50 केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव है।
मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री ने कहा कि अगर इनकी स्थापना हो जाती है तो ‘हमारे देश में शोध का माहौल ही बदल जाएगा।’ थरूर ने शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय मिशन की स्थापना करने, नारायणमूर्ति समिति तथा काकोदकर समिति की सिफारिशों के साथ साथ शोध के क्षेत्र में व्यय दो फीसदी बढ़ाए जाने की वकालत भी की।
उन्होंने कहा कि रोजगार के पर्याप्त अवसरों के अभाव में देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है और उनके आतंकवादी तथा माओवादी गतिविधियों का शिकार बनने की आशंका है।
थरूर ने कहा ‘हमें अधिक तथा उन्नत शैक्षिक संभावनाओं के माध्यम से उन्हें रोजगार के बेहतर अवसर देने चाहिए। मेरा संदेश है। समय आ गया है जब शिक्षा के हजारों फूलों को खिलने दें।’ उन्होंने कहा कि भारत में 621 विश्वविद्यालय और 33,500 महाविद्यालय हैं जिसके चलते यहां दुनिया भर में सबसे बड़ा उच्च शिक्षा संस्थान नेटवर्क है और छात्रों की भर्ती के मामले में हमारा स्थान दूसरा है। इसके बावजूद वर्ष 2011 में सकल भर्ती अनुपात 18.8 फीसदी रहा जो 26 फीसदी के वैश्विक औसत से बहुत पीछे है।
थरूर ने कहा कि शिक्षा का उच्च स्तर विकसित करने, कौशल विकास करने और ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है जिसमें न केवल अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास हो बल्कि अच्छे रोजगार को भी बढ़ावा मिले। उन्होंने कहा कि भारत का लक्ष्य जीडीपी की 8.2 फीसदी की वृद्धि को 8.5 फीसदी करना है। ऐसे में देश को शिक्षा में निवेश करने और शिक्षा का स्तर सुधारने में मदद की जरूरत है।
आईआईटी और आईआईएम तथा अन्य कुछ विश्व स्तरीय संस्थानों का संदर्भ देते हुए मंत्री ने कहा कि औसत संस्थानों के बीच ऐसे भी कुछ संस्थान हैं। उन्होंने 1,471 महाविद्यालयों और 111 विश्वविद्यालयों में यूजीसी द्वारा किए गए सर्वे का जिक्र करते हुए कहा कि 73 फीसदी महाविद्यालय और 68 फीसदी विश्वविद्यालय मध्यम और निम्न गुणवत्ता वाले पाए गए थे। थरूर ने यह भी कहा कि 2009 में एफआईसीसीआई के सर्वे में कहा गया था कि 64 फीसदी नियोक्ता इंजीनियरिंग संस्थानों से आ रहे नए स्नातकों की योग्यता से ‘कुछ हद तक संतुष्ट’ हैं।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि जीडीपी का मात्र 1.22 फीसदी ही शिक्षा पर खर्च किया जाता है जबकि अमेरिका में यह प्रतिशत 3.1 और दक्षिण कोरिया में 2.4 है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में छात्र शिक्षक अनुपात 26:1 है जबकि वैश्विक औसत 15:1 है। थरूर ने कहा कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र के तेजी से विस्तार के कारण संकाय सदस्यों की कमी हो रही है। (एजेंसी)
First Published: Monday, November 5, 2012, 17:23