Last Updated: Thursday, September 20, 2012, 13:31

ज़ी न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली : यूपीए सरकार और तृणमूल कांग्रेस के अपने-अपने रुख से पीछे नहीं हटने के कारण स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। डीजल कीमतों में बढ़ोतरी और रिटेल में एफडीआई को लेकर तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस नीत गठबंधन से समर्थन वापस लेने का फैसला लेने के बाद भी सरकार ज्यादा मुश्किल में नहीं दिख रही है।
यूपीए सरकार को पर्याप्त संख्याबल जुटाने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। ऐसी संभावना है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार का साथ दे सकती है। सूत्रों के अनुसार, बुधवार को ऐसी खबरें आई थी कि बसपा ने यूपीए सरकार को पूरा साथ देने का आश्वासन दिया है। अब इस बात की पूरी संभावना है कि ममता के अपने स्टैंड पर अडिग होने की स्थिति में मायावती की पार्टी यूपीए सरकार का साथ देगी।
यूपीए की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी तृणमूल चाहती है कि सरकार खुदरा क्षेत्र में एफडीआई का निर्णय वापस ले, डीजल के मूल्यों में तीन से चार रुपये की कमी करे और एलपीजी सिलेंडरों की संख्या प्रति वर्ष 24 की जाए। सरकार का बाहर से समर्थन कर रही समाजवादी पार्टी की रणनीति पर संशय बरकरार है।
यदि कांग्रेस पार्टी अपने रास्ते तृणमूल कांग्रेस से अलग करती है तो भी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए प्रमुख नीतिगत फैसले लेने में दिक्कतें नहीं आएंगी। इसके लिए मायावती की पार्टी या समाजवादी पार्टी सरकार के लिए खेवनहार बन सकती है। हालांकि, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं और पार्टी की संसदीय दल की बैठक के बाद आगे की रणनीति बनाने की बात कही है। ऐसे में संभावना है कि कांग्रेस नेतृत्व मायावती की पार्टी से सहयोग लेगी। भले ही इसके लिए `भारी कीमत` क्यों नहीं चुकानी पड़े।
मौजूदा परिदृश्य में बसपा ही सबसे बेहतर कांग्रेस को नजर आ रही है। वहीं, मायावती ने भी यह संकेत दिया है कि वह मध्यावधि चुनाव के पक्ष में नहीं है। खासकर छह महीने पहले हुए यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखते हुए बसपा ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहेगी। यूपीए सरकार के प्रति अपने नरम रुख का संकेत देते हुए बसपा ने विपक्षी दलों की ओर से आहूत देशव्यापी बंद से खुद को अगल रखने का फैसला किया है।
यह भी न भूलें कि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने केंद्र कुछ दिनों पहले सरकार के ‘जनविरोधी’ फैसलों के विरोध में आगामी नौ अक्टूबर को लखनऊ में महासंकल्प रैली के फौरन बाद केंद्र की संप्रग सरकार को समर्थन देने पर पुनर्विचार करने का ऐलान किया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन से तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापस ले लेने के फैसले के बाद अब समाजवादी पार्टी भी ‘प्रतीक्षा करो ओैर देखो’ की नीति अपना रही है। उसने कहा है कि हालांकि वह अभी तक सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन कर रही है ,लेकिन कह नहीं सकती कि ऐसा वह कब तक करेगी।
First Published: Thursday, September 20, 2012, 13:31