Last Updated: Sunday, May 20, 2012, 15:21
नई दिल्ली : नीतिगत विफलताओं के गंभीर आरोपों से घिरी संप्रग दो सरकार सोमवार को अपने तीन साल पूरे करने जा रही है और उधर अगले दो साल में होने जा रहे आम चुनावों को लेकर लटक रही तलवार के बीच कई प्रमुख आर्थिक विधेयकों तथा खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण फैसले अभी अधर में हैं।
पिछले करीब डेढ़ साल से एक के बाद एक संकट में फंसती जा रही संप्रग दो सरकार की तस्वीर संप्रग एक से एकदम अलग कही जा सकती है। पिछली संप्रग सरकार के रास्ते में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर वाम दलों ने काफी रोड़े अटकाए थे लेकिन इसके बावजूद नीतिगत मसलों पर वह आगे बढ़ती गयी थी।
लेकिन संप्रग दो सरकार की परेशानियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। सरकार सबसे अधिक महंगाई से परेशान है जो अप्रैल में दहाई के आंकड़े में पहुंच गयी। इतना ही नहीं विनिर्माण और कर संग्रहण के क्षेत्र में भी गिरावट ने सरकार की रातों की नींद उड़ा रखी है।
अर्थशास्त्री से राजनेता बने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिका परमाणु करार को लेकर पहले कार्यकाल में अपनी सरकार पर बड़ा दांव खेला था लेकिन वह भी इस बार 2 जी स्पेक्ट्रम समेत विभिन्न घोटालों से परेशान नजर आ रहे हैं। राष्ट्रमंडल खेल घोटाले तथा आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले ने सरकार की छवि को और आघात पहुंचाया है।
तृणमूल कांग्रेस जैसे संप्रग के प्रमुख घटक दल ने भी खुदरा क्षेत्र में एफडीआई हो या फिर आतंकवाद विरोधी तंत्र ‘‘नेशनल काउंटर टेरेरिज्म सेंटर (एनसीटीसी) की स्थापना, उसने सरकार को नाकों चने चबवा दिए हैं। परेशानियों से घिरी सरकार के लिए जुलाई में राष्ट्रपति पद के चुनाव ने एक नयी चुनौती पैदा कर दी है। सरकार अभी तक अपने उम्मीदवार का फैसला नहीं कर पायी है। हालांकि दो क्षेत्रीय पार्टियों बीजू जनता दल और अन्नाद्रमुक ने पूर्व लोकसभा स्पीकर पी ए संगमा के नाम पर पहल की है।
यह रोचक बात है कि संगमा की अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने उनके इस कदम से दूरी बना रखी है। राकांपा खुद संप्रग सरकार में शामिल है। आज की ताजा स्थिति के अनुसार, कांग्रेस नीत संप्रग दो को राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचक मंडल में बढ़त प्राप्त है जहां उसके मत का मूल्य करीब 11 लाख है।
संप्रग के संकटमोचक प्रणव मुखर्जी तथा उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के नामों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है और ये नाम सत्तारूढ़ गठबंधन को बाहर से भी सपा, बसपा और राजद जैसे दलों का समर्थन दिला सकते हैं। ऐसे में भाजपा द्वारा उनकी उम्मीदवारी का विरोध करने का कोई अधिक असर नहीं होगा।
सरकार न केवल घोटालों बल्कि विधायी और नीतिगत मामलों में भी पंगु नजर आ रही है। सिविल सोसायटी के दबाव में लाए गए लोकपाल विधेयक का भविष्य भी तृणमूल कांग्रेस जैसे घटक दलों के विरोध के कारण अनिश्चित नजर आ रहा है। ममता बनर्जी की अगुवाई वाली पार्टी ने केन्द्रीय कानून के जरिए राज्यों में लोकायुक्त के गठन पर कड़ा विरोध जताया है।
संसद के मौजूदा बजट सत्र की समाप्ति में अब केवल दो दिन का समय बचा है और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि राज्यसभा में यह विधेयक पारित होने के लिए आएगा। सरकार के प्रबंधकों द्वारा अक्सर महत्वपूर्ण मामलों में फैसले लेने में गठबंधन की मजबूरियों को एक बड़ी वजह बताया जाता रहा है। कांग्रेस के बाद संप्रग की सबसे बड़ी घटक पार्टी तृणमूल कांग्रेस एक तरह से किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस को बख्शती नजर नहीं आ रही है।
खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के मुद्दे पर सरकार के एक अन्य घटक दल द्रमुक ने तृणमूल कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार के लिए परेशानियां बढ़ा दीं और एक अन्य घटक दल राकांपा के प्रमुख शरद पवार ने तो सार्वजनिक तौर पर कह दिया कि प्रधानमंत्री द्वारा गठबंधन की मजबूरियां गिनाए जाने से वह खुश नहीं हुए हैं और उन्होंने इसे सहयोगी दलों पर आरोप मढ़ने की नीति के रूप में देखा है ।
उधर सरकार की बेहतर छवि पेश करने के लिए बनाए गए मंत्रियों के समूह के प्रमुख सदस्य और विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने प्रधानमंत्री को लेकर हो रही हर तरह की आलोचना और सरकार की नीतिगत कमजोरी संबंधी आरोपों को सिरे से खारिज किया है।
उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि इस समय हमारे पास उनसे बेहतर कोई व्यक्ति हो सकता है। ऐसे समय में जब हम दबाव में हैं और भारत के शासन को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, हमारे पास सिंह से अच्छा व्यक्ति हो ही नहीं सकता। खुर्शीद ने साथ ही कहा कि उन्हें तृणमूल कांग्रेस जैसे सहयोगियों की ओर से खड़ी की जा रही समस्याओं के लिए अकेले जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
संप्रग सरकार मंगलवार को अपनी तीसरी वषर्गांठ के मौके पर अपने नेताओं के लिए एक रात्रिभोज का आयोजन कर रही है और इस अवसर पर पिछले एक साल में विभिन्न सेक्टरों में उठाए गए कदमों की जानकारी देता एक रिपोर्ट कार्ड भी जारी किया जाएगा। गौरतलब है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने न्यूयार्क में हाल ही में कहा था कि वर्ष 2014 से पहले कोई प्रमुख सुधार संभव नहीं है।
हालांकि उन्होंने बाद में अपने बयान में सुधार किया और कहा कि पेंशन और बीमा विधेयक जैसे उपायों को आने वाले दिनों में मंजूरी दी जा सकती है जिसकी वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी भी उम्मीद लगाए हुए हैं।
‘‘रिपोर्ट टू दी पीपुल’’ नामक अपनी रिपोर्ट में सरकार द्वारा भ्रष्टाचार से निपटने और वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के बावजूद सतत आर्थिक विकास के लिए किए गए प्रयासों का जिक्र किए जाने की संभावना है।
ऐसी संभावना है कि सरकार अपनी उपलब्धियों में घरेलू सुरक्षा मोर्चे, विदेश संबंधों, भ्रष्टाचार से लड़ने में सक्षम बनाने वाले विधेयकों के पारित होने तथा सेवा प्रदाता तंत्र में सुधार को गिनाएगी।
आगामी सप्ताह सरकार संसद में काले धन पर एक श्वेतपत्र भी पेश करने जा रही है जिसमें इस संबंध में स्विट्जरलैंड जैसे देशों के साथ हुए समझौतों की सफलता को मुख्य रूप से रेखांकित किया जा सकता है ।
सरकार चाहे जो कहे लेकिन विपक्षी दल सरकार के पिछले तीन साल के कामकाज को लेकर खुश नहीं हैं। यहां तक कि कुछ समर्थक दलों के भी विपरीत विचार हैं।
भाजपा नेता तथा पार्टी प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी कहते हैं कि संप्रग सरकार पिछले तीन साल में अधकचरा गठबंधन साबित हुई है। उन्होंने कहा, यह पंगु और भ्रष्टाचार से घिरी सरकार है। भाजपा की सहयोगी जनता दल यू भी इन्हीं विचारों से सहमति रखती है। पार्टी प्रवक्ता शिवानंद तिवारी ने कहा कि संप्रग का रिकॉर्ड पूरी तरह नकारात्मक रिपोर्ट कार्ड होगा।
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के मोहन सिंह भी सरकार के आलोचक हैं। वह कहते हैं, मैंने आज से पहले कभी ऐसी अजीबोगरीब सरकार नहीं देखी। ऐसी सरकार जो रेल भाड़े को बढ़ाने का फैसला करने वाले अपने रेलवे मंत्री तक की रक्षा नहीं कर सकती।
क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने का प्रयास कर रहे बीजद के लोकसभा सदस्य भृतुहरि मेहताब कहते हैं, आपको किसी के चेहरे पर मुस्कान दिखाई देती है। आम आदमी की तो बात ही छोड़ दीजिए, मंत्रियों तक के चेहरे लटके हुए हैं। वाम दल भी संप्रग दो से खासे नाराज हैं।
कम्युनिस्ट पार्टी के नेता डी राजा कहते हैं कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम की अनदेखी करने के कारण सरकार की यह हालत हुई है। इसी के लिए घटक दल सरकार को अलग-अलग दिशाओं में खींच रहे हैं और यूपीए 2 खुलेआम कोरपोरेट समर्थक सरकार बन गयी है। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी कहते हैं, नकारात्मक सोच वाले लोग किसी के भी रिकॉर्ड में छेद ढूंढ निकालते हैं। (एजेंसी)
First Published: Sunday, May 20, 2012, 20:51