Last Updated: Monday, May 20, 2013, 16:49

नई दिल्ली : राज्यों में समुचित योग्यता के बगैर ही प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की तदर्थ नियुक्यिों पर कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि इस तरह की नीतियां समूची शिक्षा व्यवस्था और देश के भविष्य को ही चौपट कर रही हैं।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने इस व्यवस्था से असहमति व्यक्त करते हुए जानना चाहा कि शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद इस नीति को कैसे आगे बढ़ाया जा सकेगा। न्यायाधीशों ने गुजरात के प्राथमिक स्कूलों में ‘विद्या सहायक’ की नियुक्ति से संबंधित मामले में राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी करते हुए कहा कि हम ऐसे शिक्षकों की योग्यता के बारे में जानना चाहते हैं।
न्यायाधीशों ने ऐसे शिक्षकों की योग्यता और नियुक्तियों से संबंधित विवरण तैयार करने का राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि अनुच्छेद 21-क के अस्तित्व में होने के बाद आप इस तरह की नीति कैसे तैयार कर सकते हैं। यह हतप्रभ करने वाला है। उत्तर प्रदेश में भी इस तरह की नियुक्तियां हैं। ये शिक्षा सहायक तो शिक्षा शत्रु हैं। न्यायालय ने कहा कि कई राज्यों में प्राथमिक शिक्षकों की तदर्थ नियुक्यिां की जा रही हैं और इसके लिए उन्हें नियमित शिक्षकों की तुलना में एक चौथाई कम वेतन मिलता है।
न्यायाधीशों ने कहा कि जब हमने अनुच्छेद 21-क पर अमल कर दिया है तो फिर क्या हम इस व्यवस्था को अनुमति दे सकते हैं? हमारी चिंता शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर है। हम प्रदान की जा रही शिक्षा के प्रति काफी गंभीर हैं। हम समुचित योग्यता नहीं रखने वालों को तदर्थ शिक्षक नियुक्त करके पूरी शिक्षा व्यवस्था को ही चौपट कर रहे हैं। (एजेंसी)
First Published: Monday, May 20, 2013, 16:49