Last Updated: Saturday, March 16, 2013, 17:58
नई दिल्ली : सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र सीमा घटाने के सरकार के प्रस्ताव का मुस्लिम समुदाय के तीन अहम संगठनों ने जोरदार विरोध किया है। उनका कहना है कि इससे पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों पर आघात पहुंचेगा। कुछ संगठनों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस प्रस्ताव को वापस लेने की अपील की है।
जमात इस्लामी हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मुस्लिमों की सामाजिक व धार्मिक संगठनों की सर्वोच्च संस्था मुस्लिम मजलिस मुशवरात ने कहा कि सरकार की इस पहल का समाज पर `भयंकर दुष्प्रभाव` पड़ेगा। उनका कहना था कि सरकार को इस प्रस्ताव को त्याग देना चाहिए।
जमात इस्लामी हिंद के नुसरत अली ने कहा कि सहमति से संबंध बनाना एक सामाजिक बुराई है। विवाह से बाहर सहमति से संबंध बनाने की उम्र कम करने से सामाजिक मूल्यों और भारतीय पारिवारिक ढांचे पर बुरा असर पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के नेतृत्व में मंत्रियों के एक समूह ने निर्णय लिया है कि सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 से घटाकर 16 वर्ष की जाएगी। केंद्र सरकार ने दुष्कर्म रोधी कानून बनाने के लिए इस मंत्री समूह का गठन किया था।
अली ने कहा कि इस प्रावधान से भारत में `यौन अराजकता` की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी, क्योंकि 16 वर्ष और इससे ऊपर की उम्र वाले छात्र यौन गतिविधियों में संलिप्त हो जाएंगे। अली ने बताया, `हमारा विचार है कि यौन संबंध (विवाहेतर) को एक अपराध माना जाना चाहिए। उम्र सीमा की विचार किए बिना यह एक दंडनीय अपराध होना चाहिए। हम चाहते हैं कि सरकार इस प्रस्ताव को वापस ले और विवाह के बाहर यौन संबंध को संज्ञेय अपराध घोषित करे।`
मुस्लिम मजलिस मुशवरात के मौलाना अहमद अली ने भी कुछ ऐसा ही विचार व्यक्त किया। उनका कहना था कि इस संवेदनशील मसले पर सरकार को धार्मिक संगठनों से राय लेनी चाहिए थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी सरकार के पहल का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि विवाह पूर्व यौन संबंध सामाजिक मूल्यों और संस्कृति के खिलाफ है। (एजेंसी)
First Published: Saturday, March 16, 2013, 17:58