Last Updated: Wednesday, January 23, 2013, 14:50

नई दिल्ली: भाजपा के अध्यक्ष चुने गए राजनाथ सिंह पहले भी विभिन्न संकटों के बीच सरताज बनकर उभरे हैं। ऐसे समय में जब लोकसभा चुनाव बहुत दूर नहीं है और पार्टी गुटबाजी की शिकार है तब राजनाथ सिंह का इस पद पर चुना जाना बहुत मायने रखता है।
नितिन गडकरी के बाद भाजपा की बागडोर संभालने वाले 61 वर्षीय सिंह उत्तरप्रदेश से हैं। राजनीतिक हलकों में उन्हें काफी मृदुभाषी और बेलाग बोलने वालों में माना जाता है। इससे पहले भी वह इस भूमिका को अंजाम दे चुके हैं। अब आगे उनके सामने प्रमुख चुनौती है आगामी आम चुनाव।
नाटकीय रूप से सिंह के चुने जाने पर एक तरह से भाजपा के भीतर के मतभेद पर विराम लग गया है। गडकरी के दूसरी बार अध्यक्ष चुने जाने को लेकर पार्टी में स्पष्ट तौर पर दरार नजर आ रही थी।
दिसंबर 2009 वह समय था जब सिंह के बाद अध्यक्ष पद पर गडकरी आए थे। लेकिन अब 2013 की शुरूआत में, अंतिम समय में हुए जबर्दस्त उलटफेर में गडकरी कल रात भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गए और इसके बाद दूसरी बार आम सहमति से राजनाथ सिंह की भाजपा अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई।
पार्टी के पास निश्चित तौर पर कुछ विकल्प थे लेकिन सिंह की निर्विवाद और प्रतिद्वंद्वियों के बीच बेहतर छवि ने उनके नाम पर सहमति बनाने में मदद की।
राजनाथ सिंह ऐसे समय में पार्टी का दायित्व संभाल रहे है जब ठीक तीन दिन पहले ही कांग्रेस ने अपने ‘युवराज’ राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाया है। अब एक अहम सवाल है कि क्या सिंह भाजपा को कांग्रेस के बरक्स खड़ा कर पाएंगे।
कॉलेज में भौतिकी के व्याख्याता के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले राजनाथ सिंह का पार्टी में धीरे-धीरे उदय हुआ। 2006 से 2009 के दौरान भाजपा प्रमुख के तौर पर उन्होंने काफी प्रतिष्ठा हासिल की और दिखा दिया कि चाहे मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी हो या केंद्रीय मंत्री या फिर पार्टी की कमान, वह कुशलता से जिम्मेदारी निभा सकते हैं। सिंह के पार्टी में दोबारा शीर्ष स्थान हासिल करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नजदीकी ने उनकी राह को आसान बना दिया।
भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी के बाद 2005 में भाजपा की बागडोर संभालने वाले राजनाथ सिंह ने पार्टी को फिर से एकजुट किया और पार्टी की मूल विचारधारा हिंदुत्व पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में कोई समझौता नहीं होगा।
बहरहाल, 2009 में पार्टी को केंद्र में सत्ता में लाने में नाकामी तो मिली ही, साथ ही 2004 की तुलना में पार्टी को 22 सीट भी कम मिली।
उत्तरप्रदेश के चंदौली जिले में 10 जुलाई 1951 को जन्मे सिंह ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिकी में एमएससी की डिग्री हासिल की। 1971 में मिर्जापुर में केबी पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री कॉलेज में व्याख्याता नियुक्त हुए।
वर्ष 1964 में 13 वर्ष की अवस्था में ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे। व्याख्याता बनने के बाद भी संघ से उनका जुड़ाव बना रहा।
कदम दर कदम आगे बढने वाले सिंह ने 1969 में गोरखपुर में भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में संगठन सचिव से राजनीतिक करियर की शुरूआत की। 1974 में वह जनसंघ के मिर्जापुर ईकाई के सचिव बने। आपातकाल के दौरान सिंह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल हुए और जेल गए।
पहली बार 1977 में राजनाथ सिंह उत्तरप्रदेश से विधायक बने। 1977 में वह भाजपा के राज्य सचिव बने। 1986 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव बनने वाले सिंह 1988 में इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। वर्ष 1988 में ही सिंह उत्तरप्रदेश में विधानपरिषद के सदस्य चुने गए। कल्याण सिंह सरकार के दौरान वह शिक्षा मंत्री बने।
उत्तप्रदेश की सियासत में भले ही वह लंबी पारी खेल चुके हो लेकिन संसद में वह पहली बार 1994 में पहुंचे जब उन्हें राज्यसभा टिकट मिला। उपरी सदन में उन्हें भाजपा का मुख्य सचेतक भी बनाया गया।
वर्ष 1997 में जब उत्तरप्रदेश राजनीतिक संकट का सामना कर रहा था, एक बार फिर से उन्होंने राज्य पार्टी अध्यक्ष की बागडोर संभाली और इस पद पर 1999 तक रहे। इसके बाद केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार में भूतल परिवहन मंत्री बने।
केंद्र और राज्यों के बीच उनका आना जाना लगा रहा। 28 अक्तूबर 2000 को वह राम प्रकाश गुप्ता की जगह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 2002 तक वह राज्य के मुख्यमंत्री रहे। लेकिन तब तक राज्य में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी राज्य में बढत बना चुकी थीं।
भाजपा ने बसपा प्रमुख मायावती को उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री के तौर पर समर्थन देने को फैसला किया लेकिन सिंह ने इस कदम पर एतराज जाहिर किया था। इसके बाद एक बार फिर से वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बने।
किसान परिवार से आने वाले सिंह 2003 में राजग से अजित सिंह के अलग होने के बाद वाजपेयी मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री के तौर पर वापसी की।
भाजपा में सिंह के आगे बढने की यात्रा जारी रही। 31 दिसंबर 2005 को वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। उनके कार्यकाल में पहली बार कर्नाटक में भाजपा सत्ता में आयी। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, January 23, 2013, 14:50