Last Updated: Saturday, August 24, 2013, 14:44
नई दिल्ली : राज्यपाल के पद के राजनीतिक दुरूपयोग की लोकसभा में आज जमकर आलोचना करते हुए विभिन्न दलों के नेताओं ने इस पद को औपनिवेशक काल की विरासत बताया और इस संवैधानिक पद को समाप्त किए जाने की पुरजोर मांग की।
जनता दल यू, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राजद और बीजू जनता दल समेत अधिकतर दलों के सदस्यों की राय थी कि देश की आर्थिक हालत को देखते हुए राज्यपाल का पद आर्थिक ढांचे पर एक बोझ है और बदलते परिदृश्य में इस पद की व्यावहारिकता की समीक्षा किए जाने की जरूरत है।
इन दलों के नेताओं ने ‘राज्यपाल : उपलब्धियां, भत्ते और विशेषाधिकार (संशोधन विधेयक)’ पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए राज्यपाल पद की कड़ी आलोचना की और राजभवनों को ‘सफेद हाथी’ करार दिया। राज्यपाल के पद को बनाए रखने की स्थिति में अधिकतर दलों के सदस्यों ने संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सलाह मशविरे के अनुसार ही राज्यपाल की नियुक्ति किए जाने संबंधी 1988 में गठित सरकारिया आयोग की सिफारिशों का अनुपालन किए जाने की पुरजोर मांग की।
विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए भाजपा के कीर्ति आजाद ने राज्यपाल के पद को राजनीति से परे रखे जाने, नियुक्ति में पारदर्शिता बरते जाने और इस संबंध में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा गठित सरकारिया आयोग की सिफारिशों का अनुपालन किए जाने पर जोर दिया।
आजाद ने कहा कि सरकारिया आयोग समेत केंद्र राज्यों के संबंधों पर तीन आयोग और दो समितियां गठित की जा चुकी हैं लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल का पद दिनोंदिन विवादास्पद होता जा रहा है। उन्होंने दागदार व्यक्तियों को इस संवैधानिक पद पर नियुक्ति नहीं किए जाने का प्रावधान करने की भी मांग की। (एजेंसी)
First Published: Saturday, August 24, 2013, 14:40