रेलवे प्रोजेक्ट्स की प्राथमिकता नए सिरे से तय हो : संसदीय समिति

रेलवे प्रोजेक्ट्स की प्राथमिकता नए सिरे से तय हो : संसदीय समिति

नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने उपलब्ध बजटीय आवंटन को ध्यान में रखते हुए परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की प्राथमिकता नए सिरे से तय करने का काम शुरू करने और व्यवहारिक समय के भीतर इनमें से जितना संभव हो सके उन परियोजनाओं को पूरा करने का प्रयास करने की सिफारिश की है।

संसदीय समिति ने रेल मंत्रालय से पिछड़े और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों की परियोजनाओं की जरूरतों की समीक्षा करने और सम्पर्क के संबंध में बहु स्तरीय पहल अपनाने को कहा है। रेल अभिसमय समिति का विचार है कि पिछड़े और कम विकसित क्षेत्रों का रेलवे की ओर से विकास करना सही दिशा में उठाया गया कदम है।

बीजद सांसद अजरुन चरण सेठी की अध्यक्षता वाली समिति ने पाया कि नई लाइनों, आमान परिवर्तन समेत कई निर्माणाधीन परियोजनाएं सीमित संसाधनों के कारण लम्बे समय पर लंबित रह रही हैं। संसदीय समिति ने अपने ताजा रिपोर्ट में कहा है कि देश के सुदूर क्षेत्रों का विकास करने के साथ रेलवे को स्थानीय बेरोजगार युवकों के लिए रोजगार के अवसर सुनिश्चित करने के उपाय करने चाहिए ताकि ये समावेशी विकास और राष्ट्रीय मुख्यधारा के विकास से जुड़ सके।

समिति ने कहा कि सुदूर और पिछड़े क्षेत्रों को सामाजिक रूप से जरूरी रेल सम्पर्क वाली परियोजनाओं के माध्यम से जोड़े जाने की जरूरत है। रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे के साथ लागत भागीदारी के आधार पर रेल परियोजनायें शुरू करने के लिए दस राज्य सरकारों ने सहमति दी है जिनमें पांच हजार किलोमीटर से अधिक लंबाई वाली कुल 38 रेल परियोजनायें शामिल हैं।

रेल अभिसमय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे राज्यों से सामाजिक रूप से वांछानीय परियोजनाओं की लागत में भागीदारी करने का अनुरोध करता रहा है और इस क्रम में रेलवे को कुछ सफलता भी मिली है क्योंकि कुछ राज्यों ने नि:शुल्क भूमि उपलब्ध कराने और परियोजना की लागत में हिस्सेदारी करने पर सहसति दे दी है। रेलवे के साथ लागत में भागीदारी के आधार पर रेल परियोजनायें शुरू करने के लिए दस राज्य सरकारें आगे आयी हैं और राज्य सरकारों के साथ लागत में भागीदारी के आधार पर 5160 किलोमीटर से अधिक लंबाई वाली 38 रेल परियोजनायें शामिल हैं।

पिछड़े क्षेत्रों के विकास में रेलवे की भागीदारी के संबंध में रेल अभिसमय समिति ने अपनी पांचवीं रिपोर्ट में रेलवे को पूरी तरह सकल बजटीय समर्थन पर निर्भर रहने की बजाय राज्य सरकारों द्वारा लागत में हिस्सेदारी के माध्यम से पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए व्यवहार्य वित्त पोषण तंत्र बनाने की सिफारिश की थी। समिति ने वित्तीय अनुशासन के ईमानदारीपूर्वक कार्यान्वयन द्वारा आंतरिक रूप से धनराशि जुटाने, निर्थक व्यय में कटौती करने तथा रेलवे की फालतू पड़ी भूमि के वाणिज्यिक उपयोग के अन्य रास्तों का पता लगाने की भी सिफारिश की थी।

समिति की इन सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्यवाही संबंधी रिपोर्ट पिछले दिनों संसद में रखी गयी। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने समिति को बताया कि रेल मंत्रालय द्वारा वित्त पोषण तंत्र की लगातार समीक्षा की जा रही है और साथ ही निर्थक व्ययों में कटौती और रेलवे की अतिरिक्त पड़ी भूमि के वाणिज्यिक इस्तेमाल जेसे मुद्दों संभावनाओं का निरंतर पता लगाया जा रहा है। अपनी सिफारिशों में समिति ने कहा था कि पिछड़े क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए रेल मंत्रालय में एक विशेष निगरानी तंत्र होना चाहिए जो परियोजनाओं की प्रगति और निधियों के अन्यत्र उपयोग पर नजर रखे। (एजेंसी)

First Published: Sunday, September 8, 2013, 13:04

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