Last Updated: Sunday, May 13, 2012, 11:26
नई दिल्ली : सीकर से सांसद एन एल शर्मा लोकसभा के पहले सदस्य थे जिन्होंने 60 वर्ष पूर्व पहली लोकसभा की बैठक के प्रथम सत्र के दूसरे दिन 15 मई 1952 को हिन्दी में संबोधन किया था।
जी बी मावलंकर के लोकसभा का प्रथम अध्यक्ष चुने जाने के अवसर पर शर्मा ने अपने संबोधन में कहा था, ‘मैं आज जान बूझकर हिन्दी में बोल रहा हूं क्योंकि यह भारतीय संसद कहलाती है और मैं केवल रामराज्य परिषद को नहीं बल्कि सारे हाउस को रिप्रेजेंट करता हूं।’
उन्होंने कहा कि यह न समझा जाए कि हाउस आफ कामन्स की कनवेंशन्स का ही पालन करना संसद का कर्तव्य है। बहुत समय पूर्व जब इंग्लैण्ड का जन्म नहीं हुआ था और यूरोप भी अंधकार में पड़ा था। उस समय भारत में राजनीति ऊंचे से ऊंचे शिखर तक पहुंची हुई थी।
शर्मा ने कहा था कि उनका मानना है कि आप (लोकसभा अध्यक्ष) न केवल पाश्चात्य रुढ़ियों का बल्कि भारतीय रुढ़ियों और राजनीतिक तत्वों का भी ध्यान करें और चाणक्य, विदुर, वशिष्ठ, वामदेव आदि के अनुरूप इस प्रकार खुद को आगे बढ़ाएं कि थोड़े ही दिन में यह वस्तुत: भारतीय संसद बन जाए और हम भारतीय सभ्यता और संस्कृति को ऊंचे से ऊंचा उठा सकें।
उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि यहां विरोधी दल में बैठे होने पर भी न किसी दल विशेष से हमारा विरोध है और न किसी दल के साथ हम किसी प्रकार का विरोध रखते हैं।’
(एजेंसी)
First Published: Sunday, May 13, 2012, 20:57