विदेश नीति के पुरोधा और पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल नहीं रहे| Indra kumar Gujral

विदेश नीति के पुरोधा और पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल नहीं रहे

विदेश नीति के पुरोधा और पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल नहीं रहेज़ी न्यूज़ ब्यूरो/एजेंसी
नई दिल्ली : वर्ष 1990 के दशक में गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का आज दोपहर बाद 3.27 बजे 93 साल की उम्र में निधन हो गया। गुजराल पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। गुजराल का इलाज गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में चल रहा था। गुजराल को फेफड़े में संक्रमण की शिकायत की वजह से 19 नवंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और इसके बाद से उन्हें वेंटिलेटर के सहारे रखा गया था।

पारिवारिक सूत्रों ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पिछले कुछ समय से बीमार थे और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था। वह एक वर्ष से ज्यादा समय से डायलिसिस पर थे और कुछ दिनों पहले उनके फेफड़े में गंभीर संक्रमण हो गया। उनका कल दिल्ली में अंतिम संस्कार किया जाएगा।

विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए इंद्र कुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। 1950 के दशक में वे एनडीएमसी के अध्यक्ष बने और उसके बाद केंद्रीय मंत्री बने और फिर रूस में भारत के राजदूत भी रहे। अच्छे पड़ोसी संबंध को बनाए रखने के लिए ‘गुजराल सिद्धांत’ का प्रवर्तन करने वाले गुजराल कांग्रेस छोड़कर 1980 के दशक में जनता दल में शामिल हो गए। वह 1989 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में विदेश मंत्री बने। विदेश मंत्री के तौर पर इराकी आक्रमण के बाद वे कुवैत संकट के दुष्परिणामों से निपटे जिसमें हजारों भारतीय विस्थापित हो गए थे।

एच.डी. देवेगौड़ा की सरकार में गुजराल दूसरी बार विदेश मंत्री बने और बाद में जब कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो 1997 में वह प्रधानमंत्री बने। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह और अन्य नेताओं सहित संयुक्त मोर्चे की सरकार में गंभीर मतभेद होने के बाद वह सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उभरे। यह अलग बात है कि उनकी सरकार कुछ महीने ही चली क्योंकि राजीव गांधी की हत्या पर जैन आयोग की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस फिर असंतुष्ट हो गई।

पाकिस्तान के झेलम शहर में 4 दिसम्बर 1919 को जन्मे गुजराल स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से थे और कम उम्र में ही सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल गए थे। डीएवी कॉलेज, हेली कॉलेज ऑफ कॉमर्स और फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर (अब पाकिस्तान में) से शिक्षित गुजराल ने छात्र राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। वह अप्रैल 1964 में राज्यसभा के सदस्य बने और उस ‘समूह’ के सदस्य बने जिसने 1966 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने में सहयोग किया था।

जब आपातकाल लागू हुआ (25 जून 1975) तो वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे जिसमें मनमाने तरीके से प्रेस सेंसरशिप लगा था। लेकिन उन्हें जल्द ही हटा दिया गया। गुजराल 1964 से 1976 के बीच दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे, 1989 और 1991 में लोकसभा के सदस्य रहे। पटना लोकसभा सीट से उनका निर्वाचन रद्द होने के बाद लालू प्रसाद के सहयोग से वह 1992 में राज्यसभा के सदस्य बने।

गुजराल 1998 में पंजाब के जालंधर से लोकसभा में अकाली दल के सहयोग से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुने गए। उनकी सरकार का विवादास्पद निर्णय 1997 में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करना था। तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने उस पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया और पुनर्विचार के लिए इसे सरकार के पास वापस भेज दिया। उनकी पत्नी शीला गुजराल कवयित्री और लेखिका थीं जिनका निधन 2011 में हो गया। उनके भाई सतीश गुजराल मशहूर पेंटर और वास्तुविद हैं। उनके परिवार में दो बेटे हैं जिनमें एक नरेश गुजराल राज्यसभा के सदस्य और अकाली दल के नेता हैं।

First Published: Friday, November 30, 2012, 15:51

comments powered by Disqus