Last Updated: Saturday, January 12, 2013, 22:39

नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि न्यायिक प्रणाली में सुधार से कार्यपालिका, विधायिक और न्यायपालिका के बीच मौजूद संतुलन प्रभावित नहीं होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने न्यायिक सक्रियता और न्यायपालिका की ‘व्यापक भूमिका’ की धारणा का जिक्र करते हुए कहा कि इस व्यापक भूमिका की धारणा ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों से भटकने पर कई बार विरोध का सामना किया है। बहरहाल, इस तरह की सक्रियता ने कुछ ऐसे सकारात्मक योगदान दिये हैं, जिन पर सवाल नहीं उठाये जा सकते।
मुखर्जी ने ‘न्यायिक सुधार की हालिया प्रवृतियां : एक वैश्विक परिप्रेक्ष्य’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा, ‘लेकिन, मैं यहां एक एहतियाती बात कहना चाहूंगा कि प्रत्येक लोकतंत्र में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच एक सूक्ष्म अंतर मौजूद है। राज्य के ये तीनों अंग अपनी जो भूमिका निभा रहे हैं उसमें व्यवधान नहीं आना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि शासन के इन तीनों अंगों को अपनी सीमाएं नहीं लांघनी चाहिए या ऐसी भूमिका नहीं निभानी चाहिए जिसकी संविधान उन्हें इजाजत नहीं देता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि चार्ल्स मांटेस्क्यू के बुनियादी सिद्धांत में यह निहित है कि जब विधायी और कार्यकारी शक्तियां एक साथ हो जाएं या जब न्यायिक शक्तियां विधायिका और कार्यपालिका से अलग नहीं हो तब ‘स्वतंत्रता’ नहीं हो सकती। हालांकि, उन्होंने बड़ी संख्या में मामलों के लंबित रहने और खर्चीली न्याय प्रणाली पर यह कहते हुए चिंता जताई कि यह न्याय नहीं मिल पाने के समान होता है।
प्रणब ने कहा, ‘भारत में न्याय मिलने में काफी वक्त लगता है और यह खर्चीली प्रक्रिया है। बड़ी संख्या में मामलों का लंबित होना चिंता का विषय है। अधीनस्थ अदालतों और उच्च न्यायालयों में वर्ष 2011 के अंत तक 3.1 करोड़ मामले लंबित थे।’ उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय में 2012 के अंत तक लंबित मामलों की संख्या 66,000 थी। इनमें देरी से खर्च और अधिक बढ़ेगा। इसलिए यह न्याय नहीं मिल पाने के समान है और यह समानता के सिद्धांत के भी खिलाफ है जो लोकतंत्र का आधार है।’
मुखर्जी ने 18 वें विधि आयोग की रिपोर्ट का भी जिक्र किया, जिसमें अदालत के कामकाज की पूरी अवधि का उपयोग करने, प्रौद्योगिकी का अधिक इस्तेमाल करने ताकि एक ही तरह के मामलों की सुनवाई एक साथ हो जाए, मौखिक दलीलों के लिए वक्त निर्धारित करने और उच्च न्यायपालिका में रिक्तियों को भरने के सुझाव शामिल हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में हो रहे बदलाव के मद्देनजर हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का दायरा बढ़ाने की भी जरूरत हो सकती है। (एजेंसी)
First Published: Saturday, January 12, 2013, 22:39