Last Updated: Friday, August 10, 2012, 15:15

शुक्रताल: पौराणिक तीर्थ नगरी शुक्रताल में साधु संतों ने जन्माष्टमी पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया । मंदिरों तथा आश्रमों में साधु संतों ने भजन संकीर्तन किए और व्रत रखा । गुरूकुल संस्कृत महाविद्यालय में यक्ष हवन किया गया तथा ब्रहमचारियों ने व्रत रखा । प्रधानाचार्य इंद्रपाल ने योगीराज भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर विस्तार से जानकारी दी ।
ऐसी किवदन्ती है कि शुक्रताल में व्यास नंदन महाऋषि शुक्रदेव जी ने अपने श्रीमुख से श्रीमद्भागवत पुराण का वाचन किया था । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत के नायक अजरुन के पौत्र महाराजा परीक्षित ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए इसी तपोभूमि में 108 फुट के रेत के टीले पर प्राचीन वटवृक्षक के नीचे महामुनि शुक्रदेव के मुख से श्रीमद्भागवत की कथा सुनी थी ।
ऐसी मान्यता है कि इस वटवृक्ष की जटाओं में श्रीमद्भागवत के श्लोक समाये हुए हैं और यह आज भी हरा भरा है । इस वृक्ष पर धागा बांधने हैं और मनौती पूरी हो जाने पर उसे खोलकर गंगा में प्रवाहित करने का भी प्रचलन है । (एजेंसी)
First Published: Friday, August 10, 2012, 15:15