Last Updated: Thursday, October 11, 2012, 23:41

बेलगाम (कर्नाटक) : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद और विधानसभाओं की कार्यवाहियों को बार-बार बाधित किए जाने पर गुरुवार को चिंता प्रकट की। बेंगलुरु से लगभग 500 किलोमीटर दूर उत्तरी कर्नाटक के बेलगाम में नए विधानसभा भवन `सुवर्ण सौंध` का उद्घाटन करने के बाद राज्य के विधायकों, संसद सदस्यों और केंद्रीय मंत्रियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, `ये तकलीफ देने वाली चीजें हैं।`
राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार कर्नाटक का दौरा करने वाले प्रणब ने कहा कि चुनी हुई संसद और विधायिका वास्तविक लोकतंत्र के अहम अंग हैं। उन्होंने कहा, `हमारी राजनीतिक व्यवस्था में विधायक जनता के प्रतिनिधि हैं। उन पर कानून बनाने, शासन तथा जनहित के मुद्दों पर चर्चा करने, जनता की आवाज में बोलने तथा विधानमंच के जरिए उनकी शिकायतों को दूर करने की जिम्मेदारी है। लोगों की इच्छाओं और हितों पर सरकार की कार्रवाई सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी चुने हुए प्रतिनिधियों की है। उनके प्रभावी कामकाज से ही समाज में कानून का शासन वास्तविक रूप लेता है। विधायकों को हमेशा यह याद रखना चाहिए कि वे जनता के न्यासी के तौर पर काम करते हैं और उन्हें अच्छे आचरण और उत्तरदायी व्यवहार का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।`
राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान के छठे भाग के तीसरे अध्याय में धारा 168 से 177 तक राज्य विधानसभा के बारे में उल्लेख है। जहां राज्य विधायिकाओं के गठन और कामकाज में समरूपता है, वहीं बड़े राज्यों और छोटे राज्यों के बीच कुछ अंतर भी है। आरंभ से ही कुछ बड़े राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है और वहां विधानसभा और विधान परिषद दोनों हैं। लेकिन समय के साथ पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने एक सदनात्मक व्यवस्था को अपनाया है।
उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश के मामले में यह द्विसदनात्मक व्यवस्था के साथ आरंभ हुआ लेकिन 80 के दशक के मध्य में उसने एकल विधायिका अपना लिया और हाल में वहां फिर से द्विसदनात्मक व्यवस्था बहाल कर दी गई है। प्रबण ने कहा कि कर्नाटक में शुरू से द्विसदनात्मक व्यवस्था थी यहां तक महाराजा के दौर में भी कर्नाटक में विधान सभा और विधान परिषद दोनों थी। अभी महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर में द्विसदनात्मक व्यवस्था है।
उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधानसभा ने कई प्रगतिशील विधेयक पेश कर उच्च स्तर के मानक स्थापित किए हैं। भूमि सुधार कानून, सर पर मैला ढाने की प्रथा को दूर करने, पिछड़े वर्गो के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण की व्यवस्था करने सहित कई कानून बनाने का श्रेय इस संवैधानिक संस्था को जाता है। कई राज्यों और केंद्र सरकार ने इन्हें अपनाया।
राष्ट्रपति ने कहा कि राज्य विधानसभा की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य में अच्छे शासन और प्रशासन के लिए कानून बनाना है। सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची में राज्य प्रशासन और विधान के लिए 66 विषय शामिल हैं। आज शासन और विधान में प्रशासन की अत्यधिक जटिलता के बीच विधायकों को विधेयक पारित करते समय बहुत ही सतर्क रहने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि अब जो प्रचलन देखने में आ रहा है वह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है, क्योंकि विधायकों द्वारा विधायी कामकाज के प्रति गंभीरता में कमी आ रही है। दूसरा विचलित करने वाला लक्षण सदन के कामकाज में बाधा उत्पन्न किया जाना है। ऐसे अवसर आते हैं जब किसी अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे पर बड़ी संख्या में सदस्यों के आंदोलित होने पर सदन का सामान्य कामकाज निलंबित कर उस मुद्दे पर ध्यान दिया जाता है। लेकिन सदन की कार्यवाही लगातार स्थगित किए जाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। (एजेंसी)
First Published: Thursday, October 11, 2012, 23:41