Last Updated: Thursday, January 5, 2012, 06:52
नई दिल्ली : संस्कृत को भारत की आत्मा बताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि अगर हम इस अतिप्राचीन भाषा की टूटी कड़ियों को जोड़ने और बहुविषयक पहल को आगे बढ़ाने का काम करते हैं तो संस्कृत में वर्तमान ज्ञान प्रणाली और भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने की अद्भुत क्षमता है।
15वें संस्कृत सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ‘संस्कृत को दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत भाषाओं में से एक माना जाता है, लेकिन इस भाषा के बारे में ऐसी गलत धारणा बन गई है कि यह केवल धार्मिक श्लोकों और रीतियों से जुड़ी हुई है। ऐसी धारणा कौटिल्य, चरक, आर्यभट्ट, सुश्रुत, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य और अन्य कवियों, चिंतकों, लेखकों एवं संतों के कार्यों को नजरंदाज करने और इस महान भाषा के प्रति अन्याय है।’
उन्होंने कहा कि संस्कृत न केवल दुनिया को कुछ महत्वपूर्ण काव्य, ग्रंथ आदि दिए हैं बल्कि गणित, वनस्पति विज्ञान, चिकित्सा, कला और मानविकी के क्षेत्र में यह ज्ञान का खजाना है। सिंह ने कहा, ‘अगर हम इस अतिप्राचीन भाषा की टूटी हुई कड़ियों को जोड़ने और बहुविषयक पहल को आगे बढ़ाते हैं तो संस्कृत में वर्तमान ज्ञान प्रणाली और भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने की अद्भुत क्षमता है।’
वसुधव कुटुम्बकम के सिद्धांत को संस्कृत की देन बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की सभ्यता की तरह संस्कृत किसी एक जाति, धर्म या सम्प्रदाय की भाषा नहीं है। बल्कि यह ऐसी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है जो शूद्र एवं नस्ली सोच से उपर उठकर खुले, सहिष्णु एवं सभी को गले लगाने के व्यापक विचार का प्रतीक है।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, January 5, 2012, 12:22