Last Updated: Wednesday, March 21, 2012, 08:51
नई दिल्ली : सरकार ने बुधवार को समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वह समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के पक्ष में है और उसे दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला स्वीकार्य है। अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने पर केंद्र के रुख में परिवर्तन को यह कहकर उचित ठहराया कि सरकार ने ‘जाना और अंतत:’ दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से ‘सीख हासिल की।’ वाहनवती से कल न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने मुद्दे पर सरकार का रुख स्पष्ट करने को कहा था।
अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है और ‘यह हमें (सरकार) को स्वीकार्य है। पीठ ने इस पर पूछा कि क्या गृह मंत्रालय की ओर से उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामा गलत है जिसमें समलैंगिक संबंधों का विरोध किया गया है। वाहनवती ने जवाब दिया कि सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले से सीखा और यह रुख अपनाया कि समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखना समलैंगिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा कि जब हमने फैसला पढ़ा, हमने इससे जाना और अंतत: सीख हासिल की। उन्होंने कहा कि सरकार दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के ‘औचित्य को स्वीकार करती है।’ वाहनवती ने यह भी कहा कि हाल में हुई गड़बड़ी कानून अधिकारियों और गृह मंत्रालय के बीच संपर्क की कमी का परिणाम थी जब उच्चतम न्यायालय में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने समलैंगिक संबंधों का विरोध किया था।
पीठ ने कल मुद्दे पर ‘ढीले’ रुख के लिए केंद्र की खिंचाई की थी और इस बात पर भी चिंता व्यक्त की थी कि संसद इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं कर रही तथा न्यायपालिका पर ‘अधिकार क्षेत्र के उल्लंघन’ का आरोप लगाया जा रहा है। सरकार द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में दायर किए गए विभिन्न हलफनामों का अध्ययन करने के बाद शीर्ष अदालत ने कहा था कि केंद्र ने इस मामले को बहुत हल्के में लिया है जिसकी ‘निंदा की जानी चाहिए’। इसने अटॉर्नी जनरल को सरकार का रुख स्पष्ट करने के लिए अपने समक्ष पेश होने को कहा था।
पीठ ने कहा था कि उन्होंने इस मामले को बहुत हल्के में लिया है। इसकी निंदा की जानी चाहिए और हम इसे अपने फैसले में कहने जा रहे हैं। इसने कहा था कि यह अजीब मामला है जिसमें सरकार इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे पर उच्च न्यायालय में लड़ने के बाद उच्चतम न्यायालय के समक्ष तटस्थ रुख अपना रही है।
शीर्ष अदालत समलैंगिक अधिकार विरोधी कार्यकर्ताओं और राजनीतिक एवं धार्मिक संगठनों की ओर से दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया गया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था और व्यवस्था दी थी कि एकांत में दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं है।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, March 22, 2012, 00:26