सर्वदलीय बैठक में घातक माओवादी विचारधारा का पुरजोर विरोध-

सर्वदलीय बैठक में घातक माओवादी विचारधारा का पुरजोर विरोध

सर्वदलीय बैठक में घातक माओवादी विचारधारा का पुरजोर विरोधनई दिल्ली : छत्तीसगढ़ में हाल ही में हुए नक्सली हमले से सकते में आये राजनीतिक दलों ने सोमवार को सशस्त्र उग्रवाद को दबाने के लिए सभी वैध तरीकों के इस्तेमाल की वकालत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि वे घातक माओवादी विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकते।

इस मुद्दे पर किसी तरह के समझौते की संभावना को खारिज करते हुए सभी दलों ने सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में माओवादियों के खिलाफ सतत अभियान और नक्सल प्रभावित इलाकों के तेज विकास की केंद्र सरकार की दो स्तरीय रणनीति का समर्थन किया।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं पर 25 मई को हुए नक्सली हमले के मद्देनजर आयोजित सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि रणनीति को और दुरूस्त तथा मजबूत करने की जरूरत है।

25 मई के माओवादी हमले को देश की लोकतांत्रिक बुनियादों पर सीधा हमला करार देते हुए सिंह ने कहा, ‘अगर डर या आतंक की वजह से राजनीतिक गतिविधियों के लिए जगह सीमित हो जाती है तो हमारे देश की लोकतांत्रिक शक्तियों की ताकत और मजबूती पर असर पड़ेगा।’उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में हुए हमले से पहली बार यह बात सामने आई कि नक्सलियों ने एक सुनियोजित तरीके से एक राजनीतिक दल के शीर्ष नेतृत्व पर निशाना साधा है।

राजनीतिक दलों ने प्रस्ताव पारित किया कि संसदीय लोकतंत्र और भारतीय संविधान को हिंसक तरीकों से नुकसान पहुंचाने के भाकपा (माओवादी) के दिग्भ्रमित मकसद के साथ उसके उग्रवाद से खतरनाक और कुछ नहीं हो सकता।

बैठक में फैसला लिया गया कि राज्य माओवादियों के खिलाफ संघर्ष की कमान संभालेंगे और केंद्र सरकार इस संबंध में समस्त सहायता उपलब्ध कराएगी।

प्रस्ताव के अनुसार, ‘हम उनसे (केंद्र और राज्यों से) अनुरोध करते हैं कि देश और उसके संस्थानों की सुरक्षा के लिए तथा सशस्त्र उग्रवाद एवं हिंसा को रोकने के लिए सभी वैध तरीकों का इस्तेमाल किया जाए।’

बैठक में गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, संसद के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, बसपा अध्यक्ष मायावती, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, शिवसेना के अनंत गीते और जदयू अध्यक्ष शरद यादव आदि नेताओं ने भाग लिया।

राजनीतिक दलों ने कहा कि 25 मई की घटना उस क्षेत्र में सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को आतंकित करने के इरादे से तथा लोगों की राजनीतिक सक्रियता को रोकने के लिए राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर किया गया पूर्व नियोजित हमला था।

प्रस्ताव कहता है, ‘यह लोकतंत्र, आजादी और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला था।’ गृहमंत्री शिंदे ने कहा कि केंद्र सरकार प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई बैठक में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं के सुझावों के अनुसार नक्सलियों के खिलाफ बहुत कड़ी कार्रवाई पर विचार कर रही है।

राजनीतिक दलों ने राज्य सरकारों से भी आग्रह किया कि कानून के शासन के लिए अपने संसाधनों के साथ-साथ केंद्र द्वारा प्रदान किये गये संसाधनों का इस्तेमाल करें और प्रभावित राज्यों में विकास की गतिविधियों को तेज करें।

उन्होंने कहा, ‘हम संकल्प लेते हैं कि हम एक रहेंगे और एक आवाज में बोलने के साथ एक ही उद्देश्य और दृढ़संकल्प की भावना के साथ काम करेंगे।’

शिंदे ने कहा कि राजनीतिक दलों ने नक्सलवाद के मुद्दे पर पहले इतना कड़ा प्रस्ताव पारित नहीं किया और इसमें सरकार से यथासंभव कड़ी कार्रवाई के लिए कहा गया है। जब गृहमंत्री से पूछा गया कि क्या सरकार नक्सलियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल करेगी तो उन्होंने कहा, ‘मैं सैन्य सहायता लेने के मुद्दे पर कुछ नहीं कहूंगा लेकिन हम बहुत कड़ी कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं। जब ऐसे हमले होते हैं तो हमारा कर्तव्य लोकतंत्र को बचाना है।’ राजनीतिक दलों ने नक्सल प्रभावित राज्यों के युवाओं से भी हिंसा छोड़ने और वैध एवं लोकतांत्रिक तरीकों से अपने लक्ष्य प्राप्त करने की अपील की।

प्रस्ताव के अनुसार, ‘हम उन्हें आश्वासन देते हैं कि सरकार उनकी चिंताओं के प्रति संवेदना बरतेगी और अतीत में हुए किसी भी तरह के अलगाव और अन्याय की भावना पर ध्यान देगी। हम विकास, सामाजिक समावेश और आर्थिक सशक्तिकरण को तेज करने के सभी प्रयास करेंगे।’

प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्य सरकारों और खासकर छत्तीसगढ़ सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में राजनीतिक गतिविधियों के लिए और अधिक सकारात्मक माहौल बने।सिंह ने कहा, ‘केंद्र सरकार इस काम में राज्यों को पूरा सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है।’

नक्सली समस्या से प्रभावी तरीके से निपटने की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इस समस्या को स्थाई तौर पर जड़ समेत उखाड़ फेंकने के लिए हमें सभी कदम उठाने की जरूरत है लेकिन हमें तत्काल यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि नक्सली हिंसा पर लगाम कसी जाए और छत्तीसगढ़ जैसे हमलों की पुनरावृत्ति नहीं हो।’

जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने सुझाव दिया कि सरकार को आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले लोकतांत्रिक संगठनों का सम्मेलन बुलाना चाहिए और स्थानीय समस्याओं एवं उनके समाधानों पर उनकी राय जाननी चाहिए।

यादव ने सरकार से यह आग्रह भी किया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के सभी दलों के सांसदों और विधायकों से सलाह-मशविरा किया जाए। बसपा अध्यक्ष मायावती ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि कोई खुशी से नक्सली नहीं बनता और इसलिए इस समस्या की वजहों की जड़ में जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘यह समझने की जरूरत है कि लोग नक्सली क्यों बनते हैं। आदिवासियों को जंगलों से निकाल दिया गया और उन्हें रोजगार नहीं दिया गया। इलाके को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत है।’ बैठक में भाजपा की ओर से शामिल हुए अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने संवाददाताओं से बात नहीं की। (एजेंसी)

First Published: Monday, June 10, 2013, 22:22

comments powered by Disqus