Last Updated: Monday, August 20, 2012, 16:34
नई दिल्ली : भारत में बुजुर्गों के सम्मान की परंपरा रही है और हम हमेशा इसी बात पर नाज करते रहे हैं कि हमारे यहां नयी पीढी पुरानी पीढी की उपेक्षा नहीं करती बल्कि उन्हें पूरा सम्मान देती है और उनके अनुभवों की कद्र करती है।
लेकिन बढते औद्योगिकरण, उदार अर्थव्यवस्था और पश्चिमी सभ्यता ने कुछ हद तक हमारी संस्कृति में सेंध लगा दी है। अब ऐसे अनेक मामले देखे जा रहे हैं जहां बुजुर्गो को बोझ माना जाने लगा है और उनकी अनदेखी और कहीं कहीं तो तिरस्कार तक किया जाने लगा है। कुछ सीधे सीधे ऐसा करते हैं तो कुछ परोक्ष तौर पर उनकी अनदेखी करते हैं। ऐसी भी संतानें मिल जायेंगी जो माता पिता के वृद्ध होते ही उन्हें या तो सड़कों पर छोड़ देते हैं या फिर उन्हें वृद्धाश्रम में अकेले रहने को मजबूर कर देते हैं ।
पूरे भारत में इस वक्त लगभग 500 वृद्धाश्रम हैं, जिनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो वृद्धों की नि:शुल्क सेवा करते हैं । इनमें से कुछ सरकार से अनुदानप्राप्त हैं तो कुछ स्वयंसेवी संस्थानों द्वारा चलाए जा रहे हैं ।
दिल्ली में ‘गुरु विश्राम वृद्धाश्रम’ के संचालनकर्ता डॉ गिरधर प्रसाद भगत कहते हैं, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एमफिल करने के दौरान ही मन में कुछ करने की इच्छा थी । माता पिता का और गुरुजनों का आशीर्वाद मेरे इस कार्य का प्रेरणा स्त्रोत रहा है । हालांकि शुरू में पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण सेवा के इस कार्य में देरी हुई । आखिरकार वर्ष 2003 में मैंने इस वृद्धाश्रम को शुरू किया।
भगत कहते हैं, हमारे इस वृद्धाश्रम में 100 से ज्यादा बुजुर्ग हैं और अधिकतर लावारिस रूप में मिले परित्यक्त बुजुर्ग हैं, जिन्हें हम रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप या फिर अस्पतालों से लेकर आए हैं। कई तो ऐसे हैं जिन्हें कुछ याद नहीं। हालांकि यह भी आश्चर्य की बात है कि जिन संतानों ने इन्हें मरने के लिए सड़क पर छोड़ दिया था उनका नाम यह कभी नहीं भूलते। उन्होंने कहा, जैसे ही हमें किसी लावारिस बुजुर्ग की सूचना मिलती है, हम उन्हें आश्रम में ले आते हैं, हमने इस काम के लिए खास तौर पर दो गाड़ियां रखी हैं। इनके खाने पीने, दवा, रहने और अन्य सुविधाओं का भी खास ख्याल रखते हैं। इनके साथ हर त्योहार मनाते हैं। इनके दाह संस्कार की व्यवस्था भी हम इनके धर्म के अनुसार ही करते हैं। हमारा एकमात्र लक्ष्य बेसहारा और परित्यक्त बुजुर्गों को आसरा देना है। अपने बेटे के इस कार्य से प्रसन्न गिरधर प्रसाद के 80 वर्षीय पिता गुरु विश्राम कहते हैं, वैसे तो मैं बनारस (वाराणसी) में रहता हूं और कभी कभी अपने बेटे से मिलने यहां दिल्ली आ जाया करता हूं । मेरा तो सारा समय भगवान के ध्यान में ही लगा रहता है लेकिन यहां आकर अपने बेटे का सेवाकार्य देखकर बहुत खुशी होती है। सरकार ने भी बुजुर्गों के लिए वृद्धावस्था पेंशन जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं। हाल ही में सरकार वरिष्ठ नागरिकों का रखरखाव विधेयक -2007 संसद में पेश कर चुकी है। यह विधेयक माता पिता की देखभाल, वृद्धाश्रमों की स्थापना और वरिष्ठ नागरिकों की संपत्ति और जीवन की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।
एक दिन 21 अगस्त को वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाकर ही हमें अपनी जिम्मेदारियों का अंत नहीं समझ लेना चाहिये। इन बुजुर्गों की अनकही पुकार की तरफ भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है । अपने माता पिता की देखभाल का दायित्व हर संतान को समझने की आवश्यकता है ताकि भारत अपने जिन मूल्यों के लिये पूरे विश्व में पहचाना जाता है वे कहीं अतीत की बात बन कर नहीं रह जायें। (एजेंसी)
First Published: Monday, August 20, 2012, 16:34