हड़ताली संगठनों पर सख्त हुई सुप्रीम कोर्ट

हड़ताली संगठनों पर सख्त हुई सुप्रीम कोर्ट

हड़ताली संगठनों पर सख्त हुई सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली : राजनीतिक दलों की हड़ताल और धरनों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशानिर्देशों का कथित तौर पर पालन नहीं करने की जांच करने का फैसला किया है। ऐसी हड़तालों या धरने के कारण अक्सर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचता है।

न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति जे एस खेहर की पीठ ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को इस बारे में नोटिस जारी कर इस आरोप पर जवाब मांगा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस संबंध में वर्ष 2007 और वर्ष 2009 को जारी किए गए दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन क्यों नहीं किया गया है।

पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस के जवाब के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है और उन्हें स्थिति रिपोर्ट पेश करने का भी आदेश दिया है। स्थिति रिपोर्ट में उन्हें यह बताना होगा कि न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन और हड़तालों तथा प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति को नष्ट होने से रोकने के लिए कौन कौन से कदम उठाए गए हैं।

न्यायालय ने यह आदेश अधिवक्ता कोशी जैकब की एक जनहित याचिका पर दिया। याचिका में केरल में राजनीतिक दलों के बंद या हड़ताल के दौरान हुई ऐसी घटनाओं का जिक्र है।

पीठ ने कहा ‘हम इस पर गौर करेंगे लेकिन यह भी सच है कि आपने केवल केरल के ही उदाहरण बताए हैं।’ साथ ही पीठ ने जैकब के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता एम एन कृष्णमणि से अगली सुनवाई में अन्य राज्यों में हुए बंद या हड़ताल के बारे में सूचना देने को भी कहा।

वकील ने न्यायालय को बताया कि उन्होंने अन्य राज्यों से सूचना का अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी है किन्तु उन्हें सामग्री नहीं मिली है। जनहित याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक या निजी संपत्ति नष्ट करने संबंधी मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय की ओर से 16 अप्रैल 2009 को जारी दिशानिर्देशों के अनुपालन में प्राधिकारियों की ओर से पूर्वाग्रह और जानबूझकर चूक हुई।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश और फैसले चाहे जो भी हों, अगर सत्तारूढ़ राजनीतिक दल ‘बंद’ या ‘हड़ताल’ की घोषणा करते हैं तो राज्य सरकारें मूक दर्शक बनी रहती हैं जिसके फलस्वरूप कई मामलों में निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचता है।

याचिका में इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त दो समितियों की सिफारिशों का जिक्र है जिन पर न्यायालय ने तत्काल कार्यान्वयन के लिए मंजूरी दी थी। फली नरीमन समिति ने भी ऐसी सिफारिश की थी जिनका इस संबंध में कानून बनने तक पालन किया जाना था। (एजेंसी)

First Published: Friday, February 8, 2013, 15:13

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