38 साल पुराने बाढ़ विधेयक पर राज्यों को ऐतराज

38 साल पुराने बाढ़ विधेयक पर राज्यों को ऐतराज

नई दिल्ली : उत्तराखंड में बाढ़ से भारी तबाही होने के बावजूद कई राज्यों ने प्राकृतिक आपदा में जीवन और संपत्ति को होने वाले नुकसान को कम करने के लक्ष्य से बनाए गए 38 वर्ष पुराने आदर्श बाढ़ विधेयक के प्रावधानों का विरोध किया है।

केंद्रीय जल आयोग ने 1975 में इस विधेयक का प्रारूप तैयार किया था जो अधिकारियों को बाढ़ की आशंका वाले इलाकों से मकान हटाने का अधिकार प्रदान करेगा। बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने इस मसौदा विधेयक का यह कहते हुए विरोध किया है कि मकान हटाने के बाद विस्थापित लोगों का पुनर्वास एक मुश्किल काम है।

जल संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘उन्हें यह भी आशंका है कि यदि वे इस कानून को पूरी तरह लागू करने में असफल रहे तो केंद्र उन्हें आर्थिक मुआवज़ा नहीं देगा।’ अधिकारी ने कहा, ‘इस प्रकार के कई निचले इलाकों को वाणिज्यिक विकास के लिए दिया गया है और ऐसे क्षेत्रों में लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा राज्य सरकार का दायित्व है। वे जानते हैं कि वे ऐसे इलाकों में क्षति का मुआवज़ा नहीं मांग सकते।’

कई राज्यों ने इस आदर्श विधेयक पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है। यदि यह विधेयक लागू कर दिया जाता है तो निचले इलाकों में मकानों को हटाकर वहां उद्यान और खेल के मैदान बनाए जाएंगे। इस प्रकार इन इलाकों में जानमाल की क्षति काफी कम की जा सकती है। सीडब्ल्यूसी ने कानून लागू करने में राज्य सरकारों की मदद करने के लिए सभी राज्यों को यह आदर्श विधेयक वितरित किया है।

मणिपुर और राजस्थान को छोड़कर किसी भी राज्य विधानसभा ने बाढ़ मैदान क्षेत्र आदर्श विधयेक लागू नहीं किया है। मणिपुर ने 1978 में इसे पारित किया था लेकिन बाढ़ संभावित इलाकों का अभी तक सीमांकन नहीं किया गया है। राजस्थान ने भी विधेयक लागू तो कर दिया है लेकिन इसके तहत किसी उपाय पर कदम नहीं उठाया गया है।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने हाल में गंगा बाढ नियंत्रण बोर्ड की यहां आयोजित बैठक में कहा कि राज्य सरकारों की बदलती मांगों और विधेयक के विभिन्न प्रावधानों के विरोध के मद्देनज़र केंद्र इसके मसौदे में संशोधन कर सकता है। (एजेंसी)

First Published: Friday, June 21, 2013, 14:49

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