Last Updated: Tuesday, April 30, 2013, 21:33

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि कोयला खान आबंटन घोटाले की जांच रिपोर्ट सरकार के साथ साझा करने के केन्द्रीय जांच ब्यूरो के कृत्य पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इसने समूची जांच प्रक्रिया को ‘झकझोर कर’ रख दिया है। न्यायालय ने साथ ही संकल्प किया कि जांच एजेन्सी को राजनीतिक प्रभाव और हस्तक्षेप से ‘मुक्त’ कराया जाएगा। सारे घटनाक्रम पर कठोर शब्दों के साथ उच्चतम न्यायालय की तल्ख टिप्पणियों के बीच कोयला ब्लाक आबंटन घोटाला कांड में न्यायालय के निर्देशों से सरकार को कुछ राहत मिली है क्योंकि केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक को इस मामले में छह मई तक एक नया हलफनामा दाखिल करने का वक्त दिया गया है। न्यायालय इस मामले में अब आठ मई को आगे विचार करेगा।
इस मामले में दो घंटे की सुनवाई के बाद न्यायालय ने सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हों से अनेक स्प्ष्टीकरण मांगे हैं। इसमें उन्हें यह भी बताना है कि आखिल क्यों आठ मार्च, 2013 को न्यायालय में पेश स्थिति रिपोर्ट में इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया कि रिपोर्ट का मसौदा राजनीतिक आकाओं को दिखाया गया था। न्यायालय यह भी जानना चाहता है कि अतिरिक्त सालिसीटर जनरल हरेन रावल ने 12 मार्च को कैसे यह दावा किया कि रिपोर्ट का मसौदा किसी को दिखाया नहीं गया है।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने यह भी सवाल किया है कि 26 अप्रैल के हलफनामे में सीबीआई ने स्थिति रिपोर्ट के मसौदे में बदलाव के बारे में जानकारी क्यों नहीं दी और कानून मंत्री अश्विनी कुमार तथा प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा और किसके कहने पर ऐसा किया गया था।
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही न्यायाधीशों ने कहा कि सीबीआई के निदेशक के हलफनामे से ‘बहुत बेचैन करने वाले तथ्यों’ का पता चला है और इससे ‘‘जांच प्रक्रिया की बुनियाद ही हिल गयी है।’’
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘पहला काम तो हमें सीबीआई को बाहरी करणों, राजनीतिक प्रभाव और दूसरे हस्तक्षेपों से मुक्त करना है।’’ न्यायलय ने कहा कि सीबीआई को स्वतंत्र बनाने के लिये विनीत नारायण प्रकरण में सुनाये गये फैसले के 15 साल बाद भी राजनीतिक प्रभाव इसकी निष्पक्षता को ‘कुंठित’ कर रहा है। न्यायाधीशों ने कहा कि जब इस अदालत ने सुस्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि जांच अप्रभावित और बगैर हस्तक्षेप के करनी है। इसकी ठोस बुनियाद हिल रही है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘यह भी एक तथ्य है कि इस अदालत ने कहा कि आपको जांचकर्ता के रूप में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से मुक्त रहना होगा। आपको स्वतंत्र, निष्पक्ष रहना होगा और आपको राजनीतिक आकाओं से कोई निर्देश लेने की जरूरत नहीं है।’’ न्यायाधीशों ने भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में सरकार के साथ जांच रिपोर्ट साझा करने पर सीबीआई से सवाल किये और कहा कि इससे न्यायालय द्वारा जांच एजेन्सी पर किया गया भरोसा पूरी तरह उठ गया है।
न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘क्या आप अपराध प्रक्रिया संहिता से निर्देशित नहीं होते हैं? इस जांच प्रक्रिया की बुनियाद ही हिल गयी है। यह देश की एक प्रमुख जांच एजेन्सी है और उसे अपनी विश्वसनीयता, निष्पक्षता और स्वतंत्रता में इजाफा करने के लिये कुछ करना चाहिए। आपको राजनीतिक आकाओं की बैसाखी के सहारे चलने की जरूरत नहीं है। ऐसी स्थिति में हमें क्या करना चाहिए क्योंकि इसने हमारे अंतरमन को ही झकझोर कर रख दिया है।’’ इस बीच, इस मामले में अतिरिक्त सालिसीटर जनरल हरेन रावल के स्थान पर सीबीआई का प्रतिनिधित्व करने के लिये वरिष्ठ अधिवक्त उदय यू ललित को लाया गया है। न्यायालय ने इसे बहुत गंभीर मामला बताया है।
न्यायाधीशों ने सीबीआई निदेशक के हलफनामे का हवाला देते हुये पूछा , उन्होंने उसमें ‘‘ रिपोर्ट के मसौदे में किये गये बदलावों का विवरण क्यों नहीं दिया और यदि बदलाव किये गये थे तो वे किस सीमा तक किए गए थे और ये किसके कहने पर किए गए और क्या हलफनामे में उल्लिखित तीन व्यक्तियों के अलावा भी किसी अन्य व्यक्ति को भी रिपोर्ट दिखायी गयी थी।’’ जांच एजेन्सी के निदेशक ने अपने हलफनामे में कहा है कि रिपोर्ट का मसौदा कानून मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय तथा कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिवों के साथ साझा की गयी थी। न्यायालय ने सीबीआई निदेशक से प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के उन दो अधिकारियों के नामों का खुलासा करने के लिये भी कहा है जिन्हें उनकी इच्छा के अनुरूप रिपोर्ट दिखायी गयी थी।
सीबीआई निदेशक को छह मई तक एक नया हलफनामा दाािखल करना है जिसमें अदालतों द्वारा विभिन्न मामलों में मांगी गयी प्रगति रिपोर्ट साझा करने के बारे में ‘मैनुअल और दिशा निर्देशों’ का विवरण देना होगा।
यही नहीं, न्यायालय ने कोयला ब्लाक आबंटन घोटाले की जांच करने वाले दल में शामिल उप महानिरीक्षक और पुलिस अधीक्षक सहित सभी सदस्यों की शैक्षणिक योग्यता और कार्य-अनुभव का विवरण भी मांगा है। न्यायालय इस मामले में अब आठ मई को आगे सुनवाई करेगा।
इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सीबीआई को सारी अपेक्षित जानकारी मुहैया नहीं कराने के लिये केन्द्र सरकार को भी आड़े हाथ लिया। जांच एजेन्सी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोयला मंत्रालय उसकी जांच के लिये आवश्यक सूचनायें उपलब्ध नहीं करा रहा है।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यह बहुत गंभीर बात है कि जांच एजेन्सी द्वारा मंत्रालय से मांगी गयी चुनिन्दा जानकारियां मुहैया नहीं करायी गयी हैं। एक ओर आपके संयुक्त सचिव स्थिति रिपोर्ट देखना चाहते हैं लेकिन दूसरी ओर वह सीबीआई को अपेक्षित दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिये तैयार नहीं हैं।’’
न्यायालय ने कहा कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो की ‘निष्पक्षता’ बहाल करने के लिये उसे हर तरह के हस्तक्षेप से ‘मुक्त’ करना होगा। न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमें सीबीआई को राजनीतिक और किसी भी तरह के दूसरे हस्तक्षेपों से मुक्त करना होगा। हमे ही यह कवायद करनी होगी ताकि इस प्रतिष्ठित संस्था की निष्पक्षता की स्थिति बहाल हो सके।’’ इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही न्यायाधीशों ने स्थिति रिपोर्ट का मसौदा साझा किये जाने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और वरिष्ठ अधिवक्ता ललित से अनेक सवाल किये।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमने आप (सीबीआई) पर भरोसा किया। हमने आप पर विश्वास किया। इसके बावजूद आपने कुछ भी नहीं बताया। यहां तक की आपने स्थिति रिपोर्ट के जरिये भी यह नहीं बताया कि इसके मसौदे पर चर्चा हुयी और मसौदा बदला गया। 26 अप्रैल को हलफनामा दाखिल किये जाने के बावजूद इस न्यायालय को अंधेरे में रखा गया।’’ न्यायालय ने कहा कि 12 मार्च को जांच एजेन्सी ने प्रभावी तरीके से दावा किया कि उसने सरकार के साथ रिपोर्ट साझा नहीं की है लेकिन चूंकि उसे खुद ही कुछ संदेह थे जिसकी वजह से सीबीआई के निदेशक को इस बारे में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया था।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘12 मार्च को जब हमने आदेश पारित किया तब हमारे जेहन में कहीं कुछ संदेह था और इसीलिए हमने हलफनामा मांगा और ऐसा आदेश दिया। विनीत नारायण प्रकरण में न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुये न्यायाधीशों ने कहा कि यह ‘वास्तव में अधिक गंभीर’ मसला है क्योंकि आज भी सीबीआई राजनीतिक और कार्यपालिका के आकाओं के चंगुल से मुक्त नहीं हुयी है।
न्यायालय ने कहा कि उस फैसले के अनुसार संबंधित मंत्री को जांच एजेन्सी द्वारा देखे जा रहे मामलों के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है लेकिन इस अधिकार के साथ यह शर्त भी है कि इसमें से काई भी मंत्री को किसी मामले विशेष की जांच और कानूनी कार्यवाही के प्रक्रिया में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देगा।
सीबीआई के वकील ने जब न्यायालय के सवालों का जवाब देने का प्रयास किया तो न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि वे पूरी तरह सही और मुकम्मल जवाब चाहते हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि वह आवश्यक निर्देशों के बगैर ऐसे ही जवाब नहीं दें। न्यायालय ने कहा कि सब कुछ हलफनामे पर होना चाहिए क्योंकि ये बेहद महत्वपूर्ण मसले हैं। इस बीच, हरेन रावल के पत्र में किये गये खुलासे के कारण विवादों में घिरे अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने भी अपना बचाव करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि कानून मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय तथा कोयला मंत्रालय के साथ साझा की गयी रिपोर्ट के मसौदे की उन्हें कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि उनके पास आज भी इसकी प्रति नहीं हैं लेकिन वह अपनी योग्यता के अनुसार केन्द्र का बचाव करेंगे।
वाहनवती की दलीलों पर गैर सरकारी संगठन के वकील प्रशांत भूषण ने व्यंग्यात्मक तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सरकार ने अपने प्रशासनिक नियंत्रण वाली सीबीआई के निदेशक की स्वतंत्रता को भ्रष्ट कर दिया है।
न्यायाधीशों ने भी जानना चाहा कि इस मामले की जांच करने वाले दल के मुखिया का तबादला क्यों किया गया। न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘इस मामले में इस तरह से जांच नहीं की जा सती है। जांच की संबंधित अधिकारी द्वारा ही जांच की तारतम्यता बनाये रखनी चाहिए।’’ न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यह स्थिति बहुत बेचैन करने वाली है। बदले हुये हालात में हम बहुत बेचैन है। उन्हें हमें बताना ही होगा और सभी कुछ स्वतंत्र तरीके से करना होगा।’’ (एजेंसी)
First Published: Tuesday, April 30, 2013, 11:42