Last Updated: Sunday, September 16, 2012, 20:36

नई दिल्ली : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने एसएफआई के बागी छात्र नेताओं के संगठन एसएफआई-जेएनयू के उम्मीदवार लेनिन कुमार को अपना नया अध्यक्ष चुना है। उधर, पिछले चुनाव में छात्र संघ पैनल की सभी सीटें जीतने वाले छात्र संगठन आइसा ने इस बार बाकी तीन सीटें बरकरार रखी हैं।
एसएफआई की जेएनयू शाखा में विभाजन से असल में चुनावों में बागी संगठन को फायदा हुआ क्योंकि अध्यक्ष पद के अलावा इसके पांच उम्मीदवार पार्षद पदों के लिए चुने गए हैं। एसएफआई के सदस्यों ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान प्रणव मुखर्जी को समर्थन देने के मुद्दे पर अपनी संरक्षक पार्टी माकपा से अलग रूख अपनाया था जिसको लेकर इसका विभाजन हो गया। लेनिन को 4,309 कुल मतों में से 1,445 मत मिले। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आइसा के उम्मीदवार ओम प्रसाद को 200 से अधिक मतों के अंतर से हराया। पिछले साल इस पद के लिए आइसा की उम्मीदवार सुचेता डे चुनीं गयी थीं।
आइसा की मीनाक्षी बरागोहेन, शकील अंजुम और पीयुष राज पैनल के तीन अन्य पदों क्रमश: उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव के लिए चुने गए। पिछले छात्रसंघ के चुनाव केवल छह महीने पहले यानी मार्च में हुए थे। आइसा ने विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों और केंद्रों के 29 पार्षद सीटों में से 15 पर जीत दर्ज की।
एसएफआई के निष्कासित सदस्यों द्वारा गठित एसएफआई-जेएनयू ने भी पांच पार्षद सीटों पर जीत दर्ज की। बागी संगठन ने भाकपा के छात्र संगठन एआईएसएफ के सहयोग से चुनाव लड़ा था। माकपा का मूल छात्र संगठन एसएफआई केवल एक पाषर्द सीट जीत सका। वहीं अध्यक्ष पद के लिए इसकी उम्मीदवार कोपल सिंह 11 उम्मीदवारों में आठवें स्थान पर रहीं। विघटन से पहले मार्च में हुए छात्र संघ चुनाव में एसएफआई पैनल में एक भी सीट नहीं जीत सका था और पाषर्द पद के लिए इसके केवल दो उम्मीदवार चुने गए थे। लेनिन उनमें से एक थे।
एसएफआई-जेएनयू के अध्यक्ष रोशन किशोर ने कहा, ‘हमने कठिन परिस्थितियों में चुनाव लड़ा था, उसे देखते हुए यह जीत उत्साहवर्धक है। यह एक बड़ा राजनीतिक संदेश देती है।’ स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में पीएचडी के छात्र लेनिन ने कहा कि उनके पास कुछ अल्पकालिक लक्ष्य हैं, वहीं उनका दीर्घकीलीन लक्ष्य देश में छात्र आंदोलनों की विरासत को पुनर्जीवित करना है। उन्होंने कहा कि सैद्धांतिक रूख को लेकर एसएफआई का विघटन हुआ। वामपंथी छात्र संगठनों को अपना खुद का रूख अपनाने के लिए कुछ हद तक आजादी मिलनी चाहिए नहीं तो वह भी एनएसयूआई और एबीवीपी की तरह हो जाएंगे।
आइसा अध्यक्ष पद का चुनाव हार गया लेकिन पैनल की तीन सीटों पर जीत दर्ज करने की वजह से अब भी छात्र संघ पर उसका प्रभाव रहेगा। जहां 29 पार्षद सीटों में से 20 आइसा और एसएफआई-जेएनयू ने जीत लिए वहीं बाकी नौ सीटें ज्यादातर स्वतंत्र उम्मीदवारों के खातों में गयीं। वहीं एसएफआई (आधिकारिक) और एबीवीपी ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की। (एजेंसी)
First Published: Sunday, September 16, 2012, 20:34