
नई दिल्ली : मुजफ्फरनगर दंगों के परिप्रेक्य्प में हुई राष्ट्रीय एकता परिषद (एनआईसी) की बैठक में सांप्रदायिकता से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत बतायी गयी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐलान किया कि देश की एकता पर अलगाववादी ताकतों के खतरे से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
एनआईसी बैठक में सांप्रदायिक हिंसा में शामिल लोगों से तत्काल और कडाई से निपटने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि हमारी राष्ट्रीय एकता पर सांप्रदायिक, अलगाववादी और रूढ़िवादी ताकतों के खतरे से त्वरित और कड़ाई से निपटा जाना चाहिए।
सिंह ने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए राजनीतिकों सहित समाज के हर वर्ग के लोगों की ओर से राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता है। एनआईसी की बैठक के समापन भाषण में उन्होंने कहा कि जो बातें आज कही गईं, उनसे स्पष्ट है कि सांप्रदायिक, अलगाववादी और रूढ़िवादी ताकतों से हमारी राष्ट्रीय एकता, लैंगिक संबंधों, सदभाव और हमारे सभी नागरिकों की समानता को उत्पन्न खतरे से त्वरित और कडाई से निपटा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को रोकना प्राथमिक रूप से स्थानीय प्रशासन और पुलिस बल की जिम्मेदारी है। सार्वजनिक जीवन में रह रहे हम सभी लोगों विशेषकर राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल लोगों के नेतृत्व में और जीवन के हर क्षेत्र से जुडे हमारे सभी नागरिकों द्वारा एक राष्ट्रीय प्रयास की भी आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री ने राजीतिक दलों से सांप्रदायिक हिंसा का राजनीतिक फायदा उठाने से बचने की अपील करते हुए राज्यों से कहा कि वे दंगा करने और भड़काने वाले तत्वों के खिलाफ पूरी ताकत से कार्रवाई करें चाहे ऐसे तत्व कितने भी शक्तिशाली हों या किसी भी राजनीतिक दल से संबंध रखते हों।
एनआईसी की इस बैठक में प्रधानमंत्री और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सोशल मीडिया के अनियंत्रित इस्तेमाल को रोकने के लिए कोई तंत्र बनाने की मांग भी उठायी।
एनआईसी में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के लिए की गयी किसी भी किस्म की हिंसा की निन्दा की गयी। इसमें कहा गया कि सभी समुदायों के बीच सद्भावपूर्ण संबंध बनाये रखने और उसे मजबूत रखने के लिए सभी कदम उठाये जाएंगे।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि सरकार और सभी संबद्ध पक्ष धर्मनिरपेक्ष समाज को मजबूत करने के उद्देश्य से गठित संस्थाओं और कानून के दायरे में रहते हुए जनता के बीच मतभेदों और विवादों का निपटारा करने के लिए सभी कदम उठाये जाएंगे।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों पर लगातार हो रहे अत्याचार की निन्दा करते हुए प्रस्ताव में कहा गया कि ऐसे अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। हाथ से मैला उठाने की प्रथा को समाप्त करने का संकल्प करते हुए एनआईसी के प्रस्ताव में इस कार्य में लगे लोगों को वैकल्पिक रोजगार सुनिश्चित करने की बात कही गयी।
महिलाओं के बलात्कार, यौन उत्पीड़न और हिंसा की निन्दा करते हुए एनआईसी प्रस्ताव में कहा गया कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां ऐसे अपराधों में लिप्त लोगों पर कड़ी कार्रवाई करें और ऐसे मामलों में मुकदमे की कार्यवाही तेजी से हो।
परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री के अलावा, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे, वित्त मंत्री पी चिदंबरम, लोकसभा और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष क्रमश: सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, तमाम केन्द्रीय मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, राजनीतिक दलों के नेता, सार्वजनिक हस्तियां, प्रख्यात पत्रकारों, उद्योग जगत और महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं आये हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शामिल हुए।
गैर कांग्रेस और गैर भाजपा शासित राज्यों में से जहां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उपस्थित हुए, वहीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल नहीं हुईं। तेदेपा के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश के प्रस्तावित विभाजन के विरोध में बैठक से वाकआउट किया।
परिषद की 16वीं बैठक का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सांप्रदायिक घटनाओं का बिना वक्त खोए और निष्पक्ष एवं सख्त तरीके से मुकाबला करना राज्यों की जिम्मेदारी है। ‘यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि स्थानीय प्रशासन न सिर्फ तेजी से छोटी घटनाओं को बड़ा रूप लेने से रोके बल्कि सांप्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द से जल्द सजा दिलवाये।’
उन्होंने कहा, ‘दंगा करने और भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकार की पूरी ताकत का इस्तेमाल होना चाहिए, चाहे वह कितने भी शक्तिशाली हों या किसी भी राजनीतिक दल से संबंध रखते हों।’ अपने भाषण की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वैसे तो इस परिषद की हर बैठक महत्वपूर्ण होती है लेकिन चूंकि आज की बैठक उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उसके पड़ोसी जिलों में हुए सांप्रदायिक दंगों के फौरन बाद हो रही है इसलिए इसकी अहमियत और भी बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा, ‘ये घटनाएं ऐसी सांप्रदायिक नफरत को जाहिर करती हैं जो हमारे देश के कौमी किरदार के खिलाफ हैं और जिसकी हम सबको गहरी चिन्ता होनी चाहिए। एक छोटे से मामले पर एक मामूली से हादसे का नतीजा यह हुआ कि 50 से ज्यादा लोगों की जान चली गयी, सौ से ज्यादा लोग घायल हुए और कई लाख करोड़ रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ।’
सिंह ने कहा, ‘जहां तक सरकारी अधिकारियों का सवाल है, उन्हें यह सख्त हिदायत होनी चाहिए कि सांप्रदायिक तनाव के मामलों में कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी और दंगे होने की सूरत में उनकी जवाबदेही भी तय की जाएगी।’
सोशल मीडिया का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हाल की सांप्रदायिक हिंसा के कुछ मामलों के पीछे कुछ ऐसे नकली वीडियो का प्रसार सामने आया है, जिनसे लोगों में दूसरे संप्रदाय के लिए नफरत पैदा हुई। इससे पहले 2012 में सोशल मीडिया का दुरूपयोग करके पूर्वोत्तर के लोगों के मन में दहशत पैदा की गयी जो देश के दूसरे हिस्सों में रह रहे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया अपनी राय और नजरिया आबादी से जाहिर करने का जो मौका देता है, उसे कायम रखने की जरूरत है। ‘लेकिन साथ साथ हमारे लिए यह भी जरूरी है कि हम शरारती और समस्या पैदा करने वाले लोगों को सोशल मीडिया का दुरूपयोग न करने दें।’
महिलाओं की सुरक्षा की चर्चा करते हुए सिंह ने कहा कि हमारे लिए यह शर्म की बात है कि महिलाओं के साथ बदसलूकी, बलात्कार और अन्य तरह की हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं। कोई देश सही मायनों में तभी प्रगति कर सकता है, जब उसकी महिलाएं बेझिझक सार्वजनिक स्थानों पर जा सकें और अपनी मर्जी के मुताबिक अपने सामाजिक एवं आर्थिक विकास के रास्ते को चुन सकें।
अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य कमजोर तबकों के लोगों पर हो रहे अत्याचार पर चिन्ता व्यक्त करते हुए सिंह ने कहा, ‘बहुत अफसोस की बात है कि आजादी के 60 साल बाद भी इन तबकों के खिलाफ हो रहे अपराध हमें परेशान कर रहे हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।’
उन्होंने कहा कि पिछले तीन साल के दौरान हर साल अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार के 10000 से ज्यादा मामले दर्ज किये गये हैं। इस तरह की हिंसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के साथ साथ यह भी जरूरी है कि इन तबकों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार लाकर उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ने की लगातार कोशिश की जाए।
इस मौके पर शिन्दे ने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दो साल में बढ़ोतरी का रुझान है और छिटपुट घटनाएं हिंसा की बड़ी घटनाओं में तब्दील हो जाती हैं जिससे प्रभावित समुदाय के लोगों का विस्थापन होता है।
उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं की बारंबारता विशेषकर पिछले कुछ महीनों में हुई इस तरह की घटनाएं प्रदर्शित करती हैं कि इनके पीछे कोई कुटिल मंशा है। ऐसा पाया गया है कि सांप्रदायिक ताकतों का दुस्साहस बढ़ गया है और वे समाज का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही हैं।
शिन्दे ने कहा कि समाज में विभाजन पैदा करने के लिए केवल कुछ लोगों का छोटा समूह ही जिम्मेदार है। ऐसी ताकतों को काबू करना सभी संबद्ध लोगों का कर्तव्य है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित हो रही आपत्तिजनक समाग्री को रोकने का कोई तंत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि इंटरनेट और मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों के पास इन सेवाओं के जरिए एसएमएस, एमएमएस और ईमेल के प्रसारण को प्रतिबंधित करने की क्षमता हो।
अखिलेश ने कहा कि इन कंपनियों के पास आपत्तिजनक सामग्री का मूल स्थान पता करने की प्रौद्योगिकी होनी चाहिए। ‘यदि उनके पास ऐसी क्षमता नहीं है तो उन्हें विकसित करनी चाहिए। मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि वह इस दिशा में तत्काल कदम उठाये।’
सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए सोशल मीडिया के दुरूपयोग पर अखिलेश जैसी ही राय रखते हुए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि दुरुपयोग करने वाले तत्वों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है ताकि जनता उनके नफरत फैलाने वाले दुष्प्रचार का शिकार न बन सकें।
उन्होंने कहा कि ऐसा देखा गया है कि मीडिया का कुछ वर्ग और फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों का इस्तेमाल करने वाले कुछ अनैतिक तत्व इस माध्यम का इस्तेमाल अफवाहें फैलाने, फर्जी वीडियो, मैसेज और चित्रों का प्रसार करने में करते हैं ताकि धार्मिक समुदायों की भावनाएं आहत हों। ऐसी हरकतों से तनाव बढ़ता है और शांतिपूर्ण माहौल खराब होता है और सांप्रदायिक गड़बड़ी पैदा होती है।
मध्य प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा और पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी ऐसी ही आशंकाएं व्यक्त कीं। माकपा नेता प्रकाश करात ने सोशल मीडिया में भडकाउ और सांप्रदायिक दुष्प्रचार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सूचना प्रौद्योगिकी कानून में बदलाव की मांग की।
हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्दर सिंह हुडडा ने कहा कि केन्द्र ऐसी सोशल नेटवर्किंग साइटों को नियंत्रित करने के तत्काल कदम उठाये, जिनका इस्तेमाल सांप्रदायिक सदभाव को बिगाड़ने के लिए होता है। ओडिशा के मुख्यमंत्री ने मुश्किल हालात में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए निगरानी तंत्र बनाने की तत्काल आवश्यकता जतायी। (एजेंसी)
First Published: Monday, September 23, 2013, 21:22