Last Updated: Tuesday, October 1, 2013, 00:46

पटना : राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद चारा घोटाले में न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जा चुके हैं। अब सजा सुनाए जाने का इंतजार है। ऐसे में अहम प्रश्न राजद के भविष्य को लेकर खड़ा हो गया है कि अब लालटेन लेकर आगे कौन चलेगा?
चारा घोटाले में फंसने के समय लालू बिहार के मुख्यमंत्री थे, और जब गिरफ्तारी की स्थिति बनी तो उन्होंने इस्तीफा देकर पत्नी राबड़ी देवी को बाकायदा अपनी कुर्सी पर बिठा दिया था। यह बात अलग है कि आज उनके पास सत्ता नहीं है लेकिन पार्टी की जिम्मेदारी भी कम बड़ी नहीं और आज जेल जाने से पहले उन्होंने पार्टी कमान की जिम्मेदारी किसी को नहीं सौंपी। शायद उन्हें इस तरह के फैसले की आशा नहीं रही होगी।
लालू ने हाल के दिनों में अपने दोनों पुत्रों -तेजस्वी और तेज प्रताप- को राजनीति के मैदान में उतारा जरूर था। लेकिन उनके राजनीति में आने जैसी कोई औपचारिक घोषणा नहीं की थी। हालांकि उनके दोनों पुत्र राजनीतिक रूप से अभी कच्चे भी हैं। वैसे हाल के महीनों में बिहार में लालू की सक्रियता से यह साफ हो गया था कि फिलहाल उन्हें किसी उत्तराधिकारी की जरूरत नहीं है। वह एक बार फिर बिहार का नेतृत्व करने का मन बना चुके थे और इस दिशा में जी-तोड़ मेहनत भी कर रहे थे।
बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से दो विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त खा चुके लालू ने पिछले कई महीनों से अपनी पार्टी को फिर से मजबूत करने के लिए राज्य के लगभग सभी जिलों का दौरा किया था, और खोए हुए कार्यकर्ताओं को सहेजने की कोशिश की थी।
यह भी कि राजद के बड़े से बड़े नेता लालू के प्रति समर्पण की भावना रखते हैं। राजद के कद्दावर नेता और सांसद प्रभुनाथ सिंह लालू को दोषी करार दिए जाने के बाद भी उन्हें राजद का नेता बता रहे हैं। राजद का नेतृत्व करने जैसे प्रश्न पर वह कहते हैं कि लालू हमारे नेता हैं और वह जेल से ही नेतृत्व करेंगे।
लेकिन मौजूदा परिस्थिति यह कहती है कि लालू के जेल जाने के बाद बिहार की राजनीतिक तस्वीर भी बदलेगी। और यह बदलाव राजद के लिए चुनौती होगी।
वह एक समय था, जब लालू की पार्टी के विधानसभा में 130 से ज्यादा विधायक थे, परंतु आज बिहार विधानसभा में राजद सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गया है। यही स्थिति लोकसभा में भी है। वर्तमान समय में लालू सहित पार्टी के चार सांसद हैं।
राजनीति के जानकार सुरेन्द्र किशोर मानते हैं कि लालू के राजनीतिक परिदृश्य से बाहर हो जाने के कारण बिहार की राजनीति में बदलाव तो तय है। लालू बिहार की राजनीति के आधार स्तंभ रहे हैं।
जानकार यह भी कहते हैं कि पुराने दौर के राजद के कई नेता नीतीश की नाव पर सवार होने को तैयार थे, परंतु उस समय नीतीश को लोगों की जरूरत नहीं थी। मगर अब उन्हें भी कल के दोस्त भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुकाबला करने के लिए अलग-अलग इलाकों में लोगों की आवश्यकता होगी। ऐसे में वह नए लोगों को जोड़ने के लिए तैयार होंगे। यानी राजद का बचा-खुचा कुनबा भी बिखरने का अंदेशा बना हुआ है।
अब ऐसे में सवाह यह उठता है कि क्या लालू जेल के अंदर से इन सारी चुनौतियों से निपट पाएंगे? या फिर वह पार्टी की लालटेन किसी और को पकड़ाएंगे, और उनका वह उत्ताराधिकारी लालटेन को कितनी दूर तक ले जा पाएगा? इन प्रश्नों के जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है, लेकिन इतना तो साफ दिख रहा है कि लालटेन की लौ फिलहाल मद्धिम हो चली है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, October 1, 2013, 00:46