Last Updated: Sunday, July 29, 2012, 13:57

मुंबई : जिस जमीन पर आदर्श सोसाइटी की इमारत खड़ी गई है उसपर स्वामित्व का दावा करने वाले रक्षा मंत्रालय के नोटिस को ‘अतर्कसंगत और महत्वहीन’ बताते हुए महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि मालिकाना हक के लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच मुकदमेबाजी से बचा जाना चाहिए।
सरकार ने रक्षा मंत्रालय को भेजे गए अपने पत्र में कहा है, राज्य सरकार गंभीरता से महसूस करती है कि भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार के बीच मुकदमेबाजी से बचने के लिए रक्षा मंत्रालय को बेहतर सलाह मिलेगी क्योंकि भूमि के मालिकाना हक को लेकर अवांछित और महत्वहीन दावे किए जा रहे हैं। सरकार का पत्र रक्षा मंत्रालय की ओर से राज्य सरकार और आदर्श सोसाइटी को भेजे गए 28 मई 2012 के नोटिस के जवाब में आया है जिसमें दक्षिण मुंबई स्थित भूमि का कब्जा उसे सौंपने को कहा गया है। नोटिस में मांग की गई है कि राज्य सरकार दो हफ्ते के भीतर रक्षा मंत्रालय के मालिकाना हक और स्वामित्व को स्वीकार करे। ऐसा करने में विफल रहने पर वह मालिकाना हक के लिए दीवानी वाद दायर करेगी।
आदर्श सोसाइटी ने इससे पहले रक्षा मंत्रालय को अपना जवाब भेजा था। उसमें आरोप लगाया गया था कि सोसाइटी की सदस्यता नहीं पा सकने वाले आला अधिकारियों के इशारे पर उसे निशाना बनाया जा रहा है। राज्य सरकार की तरफ से अधिवक्ता उदय निघोट द्वारा भेजे गए जवाब में कहा गया है कि घोटाले की जांच के लिए पिछले साल गठित न्यायिक आयोग ने स्वामित्व के मुद्दे को पहले ही राज्य सरकार के पक्ष में सुलझा दिया है।
जवाब में कहा गया है, आयोग ने 13 अप्रैल 2012 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आदर्श सोसाइटी को आवंटित की गई जमीन राज्य सरकार की है और यह जमीन करगिल युद्ध के शहीदों की विधवाओं के लिए आरक्षित नहीं थी। इस रिपोर्ट को महाराष्ट्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है। जवाब में कहा गया है, इस रिपोर्ट के मद्देनजर हमारी राय में रक्षा मंत्रालय का रुख और भूमि का कब्जा सौंपने के लिए किया गया अनुरोध अतर्कसंगत है। इससे पहले, रक्षा मंत्रालय ने 18 जुलाई को बंबई उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर कर राज्य सरकार के पक्ष में दी गई न्यायिक आयोग की व्यवस्था को पूरी तरह दोषपूर्ण बताया था।
मंत्रालय ने कहा था, भूमि के स्वामित्व को लेकर विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। आयोग की रिपोर्ट न तो सरकार और न ही अदालत के लिए बाध्यकारी है। रक्षा मंत्रालय ने रिपोर्ट को नहीं स्वीकार किया है। रक्षा मंत्रालय ने न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर की पीठ के समक्ष दायर हलफनामे में कहा, आयोग की रिपोर्ट पूरी तरह दोषपूर्ण और रिकार्ड में उपलब्ध साक्ष्यों के विपरीत है और स्पष्ट तौर पर कानून की गलत व्याख्या करके की गई है। अदालत सामाजिक कार्यकर्ता सिमप्रीत सिंह और प्रवीण वातेगांवकर की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें मामले की जांच उच्च न्यायालय से करने और सोसाइटी के सदस्यों के खिलाफ धन शोधन निरोधक अधिनियम के प्रावधान लगाने की मांग की गई है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 29, 2012, 13:57