Last Updated: Wednesday, September 25, 2013, 19:52
नई दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने मुस्लिम पर्सनल लॉ को आपराधिक कानून से उपर नहीं बताते हुए एक मुसलमान व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज कर दी। इस व्यक्ति पर अपने ही समुदाय की 17 वर्षीय प्रेमिका का अपहरण और बलात्कार करने का आरोप है।
अदालत ने कहा कि देश का कानून सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए और कानून के समक्ष समानता की संवैधानिक अवधारणा को मुसलमानों के लिए बने किसी कानून और गैर मुसलमानों के लिए बने किसी और कानून से विलोपित नहीं किया जा सकता।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने कहा कि जहां तक देश के आपराधिक कानून की बात है लड़की और आरोपी के महज एक ही धर्म (मुसलमान) से होने का मतलब यह नहीं है कि आरोपी को विशेष राहत प्रदान किए जाने की जरूरत है।
गौरतलब है कि मुस्लिम पसर्नल लॉ देश के कानून में उल्लिखित शादी की उम्र से अलग उम्र का प्रावधान करता है। न्यायाधीश ने कहा कि भारत धर्मनिरपेक्ष अवधारणाओं से शासित होता है और शरिया इससे उपर नहीं है। मुस्लिम पसर्नल लॉ सिर्फ शादी, तलाक और निजी संबंधों पर लागू होता है लेकिन यह आपराधिक मामलों में व्यवहार्य नहीं है। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, September 25, 2013, 19:52