Last Updated: Sunday, June 2, 2013, 15:56
नई दिल्ली : दो युवकों पर सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य आरोप लगाना 20 साल की एक लड़की को महंगा पड़ा और अदालत ने न सिर्फ आरोपियों को बरी कर दिया बल्कि झूठे आरोप लगाने के मामले में लड़की के खिलाफ अभियोजन का आदेश भी दिया।
अदालत ने कहा कि वह आरोपियों की ‘‘खोई हुई इज्जत’’ बहाल नहीं कर सकती और साथ ही रेखांकित किया, ‘‘यह बहुत अफसोसनाक है कि इधर एक रूझान चल निकला है जिसमें जांच अधिकारी अपने फर्ज और जिम्मेदारियों को पूरी तरह धता बताते हुए बलात्कार की शिकायत करने वाली लड़की के इशारे पर नाचते हैं।’’ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेन्दर भट ने कहा, ‘‘यह उपयुक्त मामला है जहां भारतीय दंड संहिता की धारा 193-196 (किसी न्यायिक कार्यवाही में झूठा बयान देना) के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए आरोपकर्ता (लड़की) के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए।’’ अदालत ने आदेश दिया कि उसके फैसले की प्रतियां दिल्ली पुलिस आयुक्त और अन्य को भेजी जाए ताकि ‘‘लड़की के बयान को अकाट्य सत्य करार दिए बगैर खुले दिमाग’’ से ऐसे मामलों की जांच करने के लिए पुलिस अधिकारियों को ‘‘संवेदनशील’’ बनाने और ‘‘प्रशिक्षित’’ करने की दिशा में प्रयास किए जाएं।
पुलिस ने लड़की से बलात्कार की शिकायत मिलने के बाद नवंबर 2011 में प्रीतम यादव और मनोज कुमार यादव को गिरफ्तार किया था। सुनवाई के दौरान मनोज के वकील विकास पडोरा ने कहा कि कथित बलात्कार के समय आरोपी गुड़गांव में एक होटल में अपनी बेटी का जन्मदिन मना रहा था। अदालत ने यह कहते हुए आरोपियों को बरी कर दिया कि लड़की ने बलात्कार की फर्जी शिकायत की थी क्योंकि ऐसी कोई घटना नहीं हुई।
पुलिस के अनुसार 20 वर्षीय लड़की प्रीतम की दुकान पर मोबाइल फोन रिचार्ज करने गई तो वहां उसने इलाके में किराये के मकानों के बारे में पूछताछ की। दोनों मकानों के बारे में फोन से बात करते थे।
पुलिस के अनुसार प्रीतम लड़की के घर गया और उसे एक फ्लैट में ले गया जहां उसने लड़की का दो बार बलात्कार किया। उसके बाद वह उसे कार से एक जगह ले गया जहां मनोज इंतजार कर रहा था। एक सुनसान जगह पर जा कर मनोज ने लड़की का बलात्कार किया।
अदालत ने दोनों आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि लड़की ने जिरह में कबूल किया कि घटना से पहले प्रीतम से उसके शारीरिक संबंध थे और उसने मनोज को पुलिस थाने में देखा था। लड़की ने यह भी कबूल किया कि पुलिस अधिकारियों के कहने पर उसने मनोज को आरोपी बनाया था।
अदालत ने यह भी कहा कि मामले की जांच अधिकारी पुलिस उपनिरीक्षक सरोज बाला ने उचित और सही जांच नहीं की। अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि जांच अधिकारी बलात्कार मामलों की जांच का विशिष्ट कौशल नहीं रखतीं। (एजेंसी)
First Published: Sunday, June 2, 2013, 13:45