Last Updated: Friday, November 16, 2012, 12:29

पटना : सूर्योपासना के महापर्व छठ का हिंदू धर्मावलंबियों के लिए अलग महत्व है। इस पर्व में न केवल उदीयमान सूर्य की उपासना की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य की भी उपासना करने की परंपरा है। बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित सूर्य मंदिर का छठ महापर्व में अलग महत्व है। छठ पूजा के लिए प्रतिवर्ष लाखों श्रद्घालु इस ऐतिहासिक त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर में पहुंचते हैं।
यह मंदिर सदियों से देश-विदेश के पर्यटकों, करोड़ों श्रद्घालुओं और छठव्रतियों की अटूट आस्थाे का केंद्र है। मंदिर की अद्भुत स्थापत्यकला, कलात्मक भव्यता के कारण किंवंदती है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथें से एक रात में किया था। इसके निर्माण काल के विषय में सही जानकारी किसी के पास नहीं है। सूर्य मंदिर को देखने से ऐसा लगता है कि बिना किसी जुड़ाई के पत्थर से निर्माण कराया गया है।
मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी श्रद्घालु सच्चे मन से कुछ मांगता है, उसकी सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं। मंदिर के बाहर लगे शिलापट्ट पर ब्राह्मी लिपि में लिखित और संस्कृत में अनुवादित एक श्लोक के मुताबिक 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरूलवा ऐल ने इस देव सूर्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया था। शिलालेख से स्प्ष्ट होता है कि इस मंदिर का निर्माण काल का एक लाख पचास हजार बारह वर्ष पूरा हो गया है।
देश के एकमात्र पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (प्रात:), मध्याचल (दोपहर) और अस्ताचल (अस्त होते)के रूप में विद्यमान है। काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति जिस तरह उड़ीसा राज्य के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर का शिल्प है ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प देव के प्राचीन सूर्य मंदिर की भी है। देव मंदिर दो भागों गर्भ गृह और मुख मंडप में बंटा है।
करीब 100 फुट उंचे इस मंदिर का निर्माण बिना सीमेंट अथवा चूने-गारे का प्रयोग किए आयताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार वगरेकार आदि कई रूपों में पत्थ रों को काटकर बनाया गया है जो ना केवल आकर्षक वरन् विस्मयकारी भी लगता है। इस मंदिर पर सोने का एक कलश है। किवंदंती पर विश्वास करें तो प्राचीन समय में इस कलश को कोई चोर चुराने गया था तो वह वहीं चिपककर रह गया। प्रतिवर्ष चैत्र महीने तथा कार्तिक महीने में होने वाले छठ पर्व में यहां लाखों श्रद्धालु छठ करने के लिए जुटते हैं। छठ के दौरान इस पूरे क्षेत्र में भक्ति और आस्था का नजारा गजब का होता है।
मंदिर के पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि इस मंदिर के निर्माण का ठोस प्रमाण तो नहीं मिलता है परंतु सूर्य पुराण के अनुसार ऐल एक राजा थे जो किसी ऋषि के शाप के कारण श्वेत कुष्ठ से पीड़ित थे। एक बार शिकार करने वह देव के वनप्रांत में आ गए और रास्ता भटक गए। इस दौरान उन्हें बहुत जोर की प्यास लगी। यहीं पर एक छोटा सरोवर देख उन्होंने वहां का पानी पिया और उनका कुष्ठ ठीक हो गया।
आज भी यह सरोवर वहां मौजूद है, जहां लोग नहाने आते हैं। कहा जाता है कि इसके बाद उन्होंने अपने राज की राजधानी यहीं बनाई थी तब इस इलाके का नाम देववेड़ा रखा गया था। उन्होंने बताया कि ऐसे तो प्रत्येक दिन यहां हजारों लोग पूजा के लिए आते हैं परंतु छठ के दौरान यहां लाखों की भीड़ जुटती है। उल्लेखनीय है कि यहां छठ पर्व करने आने वाले लोगों में न केवल बिहार और झारखण्ड के लोग होते हैं बल्कि बिहार के आस-पास के राज्यों के लोग भी सूर्योपासना के लिए यहां पहुंचते हैं। (एजेंसी)
First Published: Friday, November 16, 2012, 12:29