Last Updated: Saturday, February 16, 2013, 12:58
मुंबई : बम्बई उच्च न्यायालय ने सौतेली बेटी से तीन बार बलात्कार करने के दोषी व्यक्ति की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है। इस व्यक्ति ने लड़की को धमकी दी थी कि यदि उसने इस बारे में किसी को बताया तो वह उसे ट्रेन के नीचे फेंक कर मार देगा। यह फैसला हाल में न्यायमूर्ति वीके ताहिलरमनी और साधना जाधव ने सुनाया। वे इस बात से सहमत थे कि अभियोजन अपने सबूतों से यह साबित करने में सफल रहा कि देवजी रामा पाडवे ने सचमुच ही अपनी 13 वर्षीय बेटी से बलात्कार किया।
मामले के अनुसार इस सौतेले पिता ने लड़की से पहली बार बलात्कार सात दिसंबर 2001 को उसके जन्मदिन पर विखरोली स्थित अपने घर में किया। लड़की ने चिल्लाना चाहा, लेकिन उसने उसे थप्पड़ मारा और उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। उसने लड़की को धमकी दी कि यदि उसने इस बारे में किसी को बताया तो वह उसे ट्रेन के नीचे फेंक देगा।
दूसरी घटना तीन जनवरी 2002 को हुई जब लड़की की मां ने अपनी बेटी के साथ होते इस अपराध को देख लिया। मां ने भी धमकी के कारण मुंह नहीं खोला। सौतेले पिता ने जब 20 मार्च 2002 को पीड़िता का तीसरी बार बलात्कार किया तो इस बार दोषी के नाबालिग बेटे ने इस कृत्य को देख लिया।
पीड़िता की मां विधवा थी। वह आरोपी के साथ रहा करती थी जिससे उसे तीन बच्चे हुए। इस तरह वह और उसके बच्चे आरोपी पर निर्भर थे जिसकी वजह से वे चुप रहे। पीड़िता नियमित रूप से चर्च जाया करती थी। वहां वह फेल्सी फर्नाडिस नाम की एक महिला के सपंर्क में आई और अपनी दुख भरी कहानी उसे बताई। फेल्सी उसे पुलिस के पास ले गई। इस तरह पहले बलात्कार के चार माह बाद 20 अप्रैल को आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो गई। प्राथमिकी दर्ज किए जाने से पहले हुई जांच में पता चला कि पीड़िता नाबालिग है और उसकी उम्र 13 साल है।
न्यायाधीशों ने बचाव पक्ष के इन तर्कों को खारिज कर दिया कि पीड़िता की गवाही में खामियां हैं और शिकायत दायर करने में चार महीने का विलम्ब हुआ । अदालत ने कहा किया, ‘‘यह उल्लेख किया जाता है कि पीड़िता से लंबी जिरह की गई है। वह मुश्किल से 13 साल की है। इसलिए उसकी गवाही में कुछ खामियां हो सकती हैं।’’
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘जहां तक प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी की बात है तो सात दिसंबर 2001 को हुई बलात्कार की यह घटना ही केवल एकमात्र घटना नहीं थी, बल्कि इसके बाद भी अपीलकर्ता ने तीन जनवरी 2002 और 20 मार्च 2002 को भी पीड़िता से बलात्कार किया। इस तरह अंतिम घटना प्राथमिकी दर्ज किए जाने से एक महीने पहले की है।’’ पीठ ने दोषी द्वारा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया और 12 अप्रैल 2004 को उसे सुनाई गई सजा को बरकरार रखा।
उसे भादंसं की धारा 506 (2) (डराने धमकाने का मामला) के तहत भी सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। बलात्कार के मामलों में सात साल की कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है, जो परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इस मामले में अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई क्योंकि उसने इसे गंभीर अपराध माना। (एजेंसी)
First Published: Saturday, February 16, 2013, 12:58