Last Updated: Friday, January 4, 2013, 18:00

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने आज कहा कि महाराष्ट्र सरकार को बलात्कार एवं प्रताड़ना से संबंधित कानून में संशोधन के लिए संसद का इंतजार नहीं करना चाहिए और इससे निपटने के लिए खुद अपने कानून में बदलाव लाना चाहिए।
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मोहित शाह और न्यायमूर्ति एवी मोहता की एक खंडपीठ ने कहा, ‘आप संसद का इंतजार क्यों कर रहे हैं। आप खुद इस कानून में बदलाव ला सकते हैं।’ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को कानून में संशोधन करने पर विचार कर चार हफ्तों के भीतर एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति शाह ने कहा, ‘तमिलनाडु ने हाल ही में छेड़खानी के खिलाफ एक कानून पारित किया। महाराष्ट्र भी इसका अनुशरण कर एक उदाहरण पेश कर सकता है।’
न्यायालय ने कहा, ‘महाराष्ट्र को एक प्रगतिशील राज्य माना जाता है। अगर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 354, 506 एवं 509 को गैर जमानती बना दिया जाए तो यह एक निवारक का काम करेगा।’ न्यायालय ने कहा, ‘इन अपराधों में जमानत मिल जाने से पुरुषों को लगता है कि वे भद्दी टिप्पणियां कर बच जाएंगे।’ इस खंडपीठ ने गैर सरकारी संगठन हेल्प मुंबई फाउंडेशन की ओर से महिलाओं की सुरक्षा के मामले में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया।
बंबई उच्च न्यायालय ने महिला कांस्टेबलों एवं होमगार्ड की नियुक्ति और रेलवे स्टेशनों एवं लोकल रेलगाड़ियों में उनकी तैनाती के बारे में रेलवे के अधिकारियों से एक हलफनामा भी मांगा। न्यायालय में याचिका दायर करने वाले संगठन के अनुसार 15 साल से अधिक उम्र की 97 फीसदी महिलाओं को यौन प्रताड़ना या छेड़खानी का सामना करती हैं। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से यह बताने को भी कहा कि उसने छेड़खानी के संदर्भ में 3 नवंबर 2012 को उच्चतम न्यायालय की ओर से सभी राज्यों को जारी निदेर्शों पर क्या कदम उठाए हैं। न्यायालय ने महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दों पर सी एस धर्माधिकारी की सिफारिशों को भी पेश करने को कहा। इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी। (एजेंसी)
First Published: Friday, January 4, 2013, 17:55