Last Updated: Thursday, November 24, 2011, 16:38

कोलकाता : शातिर निशानेबाज रहा शीर्ष माओवादी नेता किशनजी करीब तीन दशक तक छिपता रहा और उसने सरकार के खिलाफ लगातार रक्तरंजित लड़ाई जारी रखी। वह पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के लिए सुरक्षा के लिहाज से सबसे बड़ा सिरदर्द बना रहा।
आंध्र प्रदेश के एक गांव में जन्मा 58 वर्षीय मल्लोजुला कोटेश्वर राव मीडिया से मित्रवत व्यवहार रखता था। वह भारत में माओवादी आंदोलन का चेहरा था। किशनजी सार्वजनिक रूप से चेहरा ढंके नजर आता था। उसकी पीठ पर सिर्फ धारीदार स्कार्फ नजर आता था और उसके कंधे पर एके-47 रखी होती थी।
वर्ष 2009 में ‘ऑपरेशन ग्रीनहंट’ तथा माओवादियों की पकड़ वाले ‘लाल गलियारे’ में इसी तरह के विद्रोह विरोधी अभियानों की शुरुआत के समय से ही वह दबाव में था। पश्चिम बंगाल के लालगढ़ क्षेत्र में सक्रिय किशनजी राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र के साथ शांति वार्ता करने की अवधारणा से ही हिचकता था। वह बयान देता था कि वह बातचीत की मेज पर आने की पूर्व शर्त के रूप में हथियार डालने की बात को मानने से इनकार करता है।
किशनजी प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के पोलित ब्यूरो का सदस्य और समूह का सैन्य नेता था। उसने पश्चिम बंगाल में 2010 में सिलदा शिविर पर हमले की जिम्मेदारी ली थी। इस घटना में अर्धसैनिक बल के पूर्वी फ्रंटियर राइफल्स (ईएफआर) के 24 कर्मी शहीद हो गये थे।
किशनजी ने इस हमले के बाद कोलकाता में स्थानीय टीवी चैनलों से कहा था, यह हमारा ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ है। यह सरकार के ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ पर हमारा जवाब है। केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माओवादियों को आतंकवादियों से भी बदतर और दुर्दांत करार दिया है।
जंगलमहल में वर्ष 2009 से माओवादी अभियानों का प्रभारी और विद्रोहियों का दूसरा प्रमुख नेता किशनजी मीडिया को अज्ञात स्थानों से इंटरव्यू दिया करता था। वह अपने नाम प्रह्लाद, मुरली, रामजी, जयंत और श्रीधर बताया करता था।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, November 24, 2011, 22:08