Last Updated: Tuesday, May 14, 2013, 08:55

बेंगलुरू: कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मिट्टी पर वर्णमाला लिखा करते थे, क्योंकि माता-पिता उन्हें स्लेट और चॉक दिलाने में सक्षम नहीं थे। अत्यंत गरीब परिवार में जन्मे सिद्धारमैया ने सोमवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वह इससे पहले भी दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
मैसूर जिले में एक छोटा सा गांव है सिद्धारमनाहुंदी जहां 12 अगस्त, 1948 को उनका जन्म हुआ था। बाद में घर के हालात कुछ संभले तो उन्होंने विधिवत पढ़ाई शुरू की और विज्ञान तथा कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के लिए वह गांव से 130 किलोमीटर का सफर तय कर मैसूर शहर जाते थे।
उन्होंने वकालत शुरू की और कुछ दिनों तक छात्रों को कानून पढ़ाया भी। बाद में उन्होंने सोचा, समाज को सामाजिक न्याय दिलाने की उनकी महत्वाकांक्षा तभी पूरी हो सकती है, जब राजनीति में उतरेंगे।
वह कुरबा (गड़रिया) जाति से आते हैं जो देश में आर्थिक रूप से सबसे पिछड़ी जाति है।
वर्ष 1983 से 2006 तक वह कांग्रेस विरोधी थे और जनता परिवार से जुड़े रहे यानी जनता दल के विभिन्न धड़ों से उनका नाता रहा। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के जनता दल-सेक्युलर (जेडी-एस) पसंद आया, मगर जब उन्होंने देखा कि देवेगौड़ा अपने परिवार के सदस्यों को पार्टी में ऊंचे अोहदे देने में लगे हैं तो उनका मोहभंग हो गया।
देवेगौड़ा से मनमुटाव के बाद 2006 में सिद्धारमैया ने कांग्रेस का `हाथ` थाम लिया, तब से अब तक वह कांग्रेस के वफादार नेता हैं। कांग्रेस में उन्होंने जल्द ही पिछड़ा वर्ग के एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में जगह बना ली। पार्टी के एक धड़े ने हालांकि उन्हें `विस्थापित` तक कह डाला।
वर्ष 2008 में राज्य में जब पहली बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनी, तब सिद्धारमैया ने विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई और `भ्रष्ट शासन` का पुरजोर विरोध करते रहे।
सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री का पद आसानी मिल गया, क्योंकि इस पद के प्रबल दावेदार राज्य कांग्रेस के प्रमुख जी. परमेश्वर विधानसभा चुनाव हार गए।
वर्षो पहले राज्य के वित्त मंत्री के रूप में अपनी धाक जमा चुके सिद्धारमैया के सामने अब कर्नाटक के खनन माफियाओं और भ्रष्टाचार से निबटने की चुनौती है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, May 14, 2013, 08:55