Last Updated: Sunday, July 28, 2013, 23:25
चंडीगढ़ : लंबे कानूनी संघर्ष के बाद अदालत से वसीयतनामा फर्जी करार दिए जाने के बाद अब फरीदकोट के पूर्व महाराजा की बेटियां उनकी 20,000 करोड़ रूपए की संपत्ति ले पाएंगी। यह कानूनी लड़ाई 23 साल चली।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रजनीश कुमार शर्मा ने श्री हरिंदर सिंह बराड़ की बड़ी बेटी अमृत कौर के पक्ष में फैसला सुनाया था। अमृत कौर ने वसीयतनामा को चुनौती दी थी जिसने एक न्यास को बैंक जमा खाते और आभूषणों के अलावा राष्ट्रीय राजधानी के केंद्र में स्थित फरीदकोट हाउस, पंजाब में महल और एक किला समेत उनकी सारी संपत्तियों का केयरटेकर नियुक्त किया था। इन संपत्तियों में चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और आंध्रप्रदेश में ढेरों संपत्तियां शामिल हैं।
अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि वसीयतनामा फर्जी और मनगढ़ंत है जिससे अमृत कौर और उनकी बहन दीपिंदर कौर हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत 20,000 हजार करोड़ रुपए की उनकी संपत्ति की उत्तराधिकारी बन गयी हैं।
महाराजा के परिवार के वकील विकास जैन के अनुसार अदालत ने वसीयत को अवैध करार दिया है जो एक जुलाई, 1982 में फर्जी तरीके से किया गया था। इस फैसले के बाद मेहरवाल खेवाजी ट्रस्ट भी अवैध बन गया है। महाराजा की तीन बेटियों में अमृत कौर चंडीगढ़ के सेक्टर 10 में रहती हैं, दीपिंदर कौर कोलकाता में हैं जबकि महीपिंदर कौर कुछ साल पहले शिमला में मर गयीं। जब वसीयतनामे में फर्जीवाड़ा किया गया था तब सर बराड़ गहरे सदमे थे क्योंकि उनके एकमात्र पुत्र हरमोहिंदर सिंह बराड़ मर गए थे।
कुछ नौकरों ने कुछ लोगों और वकीलों की मदद से एक जून, 1982 को यह वसीयतनामा लागू कराया और महाराजा की पत्नी एवं मां समेत उनके परिवार को अंधेरे में रखा गया। हरमोहिंदर की मौत के आठ महीने बाद वसीयतनामा लागू किया गया। महाराजा के नौकरों और वकीलों ने ट्रस्ट बनाया और वे उसके न्यासी बन गए।
अमृत कौर को इस आधार पर उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित कर दिया गया कि उन्होंने दिवंगत महाराजा की इच्छा के खिलाफ शादी की थी। दीपिंदर कौर को महज 1200 रूपए प्रतिमाह के वेतनमान पर न्यास का अध्यक्ष नियुक्त किया गया जबकि महीपिंदर कोर को बस 1000 रूपए प्रतिमाह तनख्वाह दिया गया। बाद में अमृत कौर ने इस वसीयतनामे को चुनौती दी और कहा कि उनके पिता ने ऐसा कोई वसीयतनामा नहीं लिखा था। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 28, 2013, 21:03