Last Updated: Monday, October 10, 2011, 06:16
जी न्यूज ब्यूरोमुंबई. बचपन में जगमोहन के नाम से पुकारे जाने जाने वाले गजल के फनकार जगजीत सिंह इस दुनिया को भले ही अलविदा कह गए हों, पर उनकी सुरीली आवाज सदियों तक गूंजती रहेंगी. 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में पैदी हुए जगजीत के माता- पिता पंजाब से रोपड़ से ताल्लुक रखते थे.
‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या गम है जिसको छुपा रहे हो…. ‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है…,‘तमन्ना फिर मचल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ…. जैसे रोमांटिक और दिल को छू लेने वाली गजल अब यादों मे रह गई है. उनकी आवाज भी सबसे अलग थी. जो गजल ना भी सुनता हो उसे भी गीत से ज्यादा उनकी आवाज याद रहती है.
जगजीत के संगीत का सफर बचपन से ही शुरु हो गया था. पिता संगीत के जानकार थे, इसलिए संगीत विरासत में मिली. गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की. आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं.
जगजीत सिंह के पिता की ख्वाहिश थी कि वो भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस में जाए, लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी. हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रो. सूरजभान ने जगजीत सिंह को काफ़ी उत्साहित किया. उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए.
गजल को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय भी जगजीत सिंह के नाम जाता है. उनकी गजलों को न सिर्फ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इजाफा किया, बल्कि गालिब, मीर, जोश और फिराक जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया.
पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे. जगजीत सिंह का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ जिला के दल्ला गांव का रहने वाला है. मां बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की रहने वाली थीं. शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और आगे की पढ़ने के लिए जालंधर आ गए. डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया.

जगजीत बचपन से ही रंगीन मिजाज थे. बचपन में प्यार का परवान भी चढ़ा पर बात आगे नहीं बढ़ी. जालंधर में ही डीएवी कॉलेज के दिनों गर्ल्स कॉलेज के आसपास बहुत फटकते थे. जगजीत सिंह कहते थे कि अगर संगीत में नहीं होता तो कपड़े धोने का काम करता.
मुंबई में ही संघर्ष का दौर शुरू हुआ. वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ करते रहे. 1967 में जगजीत सिंह की मुलकात चित्रा से हुई जो खुद संगीत की शौकीन थीं. दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए. उन संघर्ष के दिनों में जगजीत सिंह इस कदर टूट चुके थे कि उन्होंने स्थापित प्लेबैक सिंगरों पर तीखी टिप्पणी तक कर दी थी. हालांकि वे इसे अपनी भूल मानते रहे. किशोर कुमार ने जगजीत सिंह के उस बयान पर अपत्ति भी जताई थी. किशोर दा ने लिखा था कि जगजीत जी ने महान पार्श्व गायक रफी साहब पर जो कहा वो उचित नहीं होगा. उनके एलबम क्लोज टू माई हार्ट में भी इसका जिक्र है.
संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जगजीत सिंह को 2003 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. गजल के साथ फिल्मों में भी उनका योगदान रहा. महेश भट्ट निर्देशित ‘अर्थ’ में जगजीत सिंह ने ही संगीत दिया था. कई लोगों को फिल्म का नाम भले ही याद न हो, लेकिन गीत हर जुबान पर है. ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो… ‘चिट्ठी ना कोई संदेश….. ‘बड़ी नाजुक है ये मंजिल… होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’…..‘कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे……सब अब यादों में बसकर रह गया है. वो ऐसे शख्सियत थे जिन्होंने इनाम और पुरस्कारों से ज्यादा नाम और सम्मान पाया. 70 साल की आयु में ब्रेन हेमरेज से वो जिंदगी की जंग हार गए पर गजल की दुनिया में सदा अमर रहेंगे.
First Published: Tuesday, October 11, 2011, 09:22