Last Updated: Saturday, June 29, 2013, 13:58
ज़ी मीडिया ब्यूरोनई दिल्ली : क्या आपकी याददाश्त कमजोर है? क्या आप भुलक्कड़ हैं और क्या आप अपने बारे में कंफ्यूज्ड हैं? `घनचक्कर` को जरा सावधानी से देखिएगा कहीं आप गोल-गोल न घूमने लग जाएं। फिल्म की कहानी दमदार है। इमरान हाशमी और विद्या बालन दर्शकों को खूब हसाएंगे। राजकुमार गुप्ता की फिल्म `घनचक्कर` ऐसी ही शंकाओं से घिरी है। उन्होंने साहसी कदम उठाया है और अपने दो पुराने मौलिक प्रयासों की तरह इस बार भी सफल कोशिश की है? कॉमेडी का मतलब हमने बेमतलब की हंसी या फिर स्थितियों में फंसी कहानी ही समझ रखा है। `घनचक्कर` 21वीं सदी के नए जामाने की कॉमेडी है। किरदार, स्थितियों, निर्वाह और निरूपण में परंपरा से अलग और समकालीन `घनचक्कर` से राजकुमार गुप्ता ने दर्शाया है कि हिंदी सिनेमा नए विस्तार की ओर अग्रसर है।

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फिल्म की कहानी इमरान हाशमी (संजय आत्रे) व विद्या बालन (नीतु) के इर्दगिर्द घुमती है। संजय अपने दो साथियों के साथ बैंक लूटते है। यह तीनों वादा करते है कि चुराए हुए पैसों को तीनों आपस में बाटेंगे। इसी बीच संजय की याददाश्त चली जाती है। यह सामान्य सी कहानी है। मराठी संजय आत्रेय इमरान हाशमी और नीतू विद्या बालन पति-पत्नी हैं। दोनों की असमान्य शादी है। उसकी वजह से उनमें अनबन बनी रहती है। दोनों एक-दूसरे की ज्यादतियों को बर्दाश्त करते हुए दांपत्य का निर्वाह कर रहे हैं। उनके बीच प्रेम और भरोसा भी है। रोज के सवालों और जवाबों से वे उकताए नजर नहीं आते। मराठी पति थोड़ा आलसी और ढीले किस्म का आरामतलब व्यक्ति है,जबकि पंजाबन पत्नी फैशनेबल और हाइपर है। ताले और सेफ खोलने में उस्ताद संजय उर्फ संजू को एक ऑफर मिलता है, जिसमें चोरी की रकम से 10 करोड़ उसे मिल जाएगा। बेहतर जीवन की उम्मीद में बीवी की रजामंदी से संजू चोरी करता है। पंडित राजेश शर्मा और इदरीस नमित दास उसका सहयोग और साथ लेते हैं। तय होता है कि चोरी की रकम तीन महीनों तक छिपा दी जाए। जब सब कुछ शांत हो जाए तो फिर हिस्से का बंटवारा कर लिया जाए। इस सहमति के बाद एक एक्सीडेंट में संजू की याददाश्त चली जाती है। संजू को याद नहीं आता कि सूटकेश कहां रख है। उधर पंडित और इदरीस को लगता है कि संजू के मन में खोट आ गया है। इन सबसे अलग नीतू अपनी फैंटेसी की दुनिया में रहती है। यहीं से कहानी शुरू होती है और एक जबरदस्त ट्रिवस्ट के साथ खत्म होती है।

इमरान हाशमी ने अपनी छवि से भिन्न एक कमजोर, सिंपल और पड़ोसी किरदार को शिद्दत से निभाया है। यही बात विद्या बालन के बारे में भी कही जा सकती है। उन्होंने नीतू को पर्दे पर उसकी खासियतों के साथ पेश किया है। नीतू की भावमुद्राओं में वह सफल रही हैं। पंजाबी लहजा कई बार उनके संवादों से फिसल गया है। राजेश शर्मा और नमित दास ने भी अपने किरदारों को इंटरेस्ट बनाए रखा है। फिल्म के अंतिम दृश्यों में आया कलाकार अपने किरदार के अनुरूप प्रभावशाली नहीं है।

राजकुमार गुप्ता की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने कहानी के सस्पेंस को उसके खुलने तक बनाए रखा है। कहानी की गति कभी धीमी और कभी तेज जरूर होती है, लेकिन निर्देशक की पकड़ नहीं छूटी है। उन्हें इमरान हाशमी और विद्या बालन का भरपूर सहयोग मिला है। दोनों कलाकार अंत तक अपने किरदारों में रहे हैं। पिछली फिल्मों की लगातार सफलता और खास छवि एवं ख्याति के बावजूद दोनों कलाकारों द्वारा `घनचक्कर` का चयन उल्लेखनीय साहसिक कदम है। इमरान हाशमी व विद्या बालन की एक्टिंग दमदार है। दोनों ने अपनी अदाकारी से फिल्म में जान डाल दी है। गेस्ट अपीरियंस में अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र और उप्पल दत्त ने अच्छी एक्टिंग की है।
First Published: Friday, June 28, 2013, 15:33