Last Updated: Sunday, March 9, 2014, 18:50
नई दिल्ली : कार्यस्थलों पर महिलाओं को बेहतर परिवेश और समान अवसर दिये जाने की बढ़ती बहस के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि निजी व पारिवारिक कारणों के चलते 60 फीसदी महिलाओं को बीच में ही अपने करियर से नाता तोड़ना पड़ जाता है। प्रवेश स्तर पर तो ज्यादातर कंपनियां महिलाओं की नियुक्ति व उनके प्रशिक्षण के लिए काफी काम करती हैं, लेकिन महिलाओं के मध्य प्रबंधन स्तर के पदों पर पहुंचने के बाद उन्हें नौकरी पर रोकने के लिए कंपनियों को काफी प्रयास करना पड़ता है। कार्यस्थल पर लिंग आधार पर संतुलन होने पर कंपनियों के प्रदर्शन, परिचालन नतीजों और अन्य चीजों में सुधार होता है।
महिंद्रा समूह की कंपनी ब्रिसलकोन की उपाध्यक्ष (एचआर और प्रतिभा प्रबंधन) रितु मेहरोत्रा ने कहा, ‘कंपनियों को ज्यादा महिला कर्मचारियों को लाने के लिए बेहतर कार्य व जीवन संतुलन बनाना होगा और साथ ही उन्हें बड़ी परियोजनाओं के लिए तैयार करना होगा।’ ग्लोबलहंट के प्रबंध निदेशक सुनील गोयल के अनुसार, ‘निजी व पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से 60 से 70 फीसदी महिलाएं बीच में ही अपने करियर को छोड़ देती हैं। या फिर उन्हें अपने संगठन में आगे बढ़ने में पूरा समर्थन नहीं मिलता है ऐसे में भी वे नौकरी छोड़ देती हैं।’
विशेषज्ञों का कहना है कि ये प्रशिक्षित महिलाएं अपनी कंपनियों के लिए मूल्यवान होती हैं और उन्हें रोकने के लिए कंपनियों को प्रयास करना चाहिए। पीडब्ल्यूसी इंडिया कंसल्टिंग की लीड सत्यवती बेरेरा का कहना है कि संगठनों को निर्णय लेने की प्रक्रिया के सभी स्तरों पर महिलाओं और पुरूषों को समान भागीदारी देनी चाहिए। ग्रांट थोंर्टान अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार कंपनियों में वरिष्ठ पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व 14 प्रतिशत पर है जो कि चिंता का कारण है और वैश्विक औसत 24 प्रतिशत के मुकाबले यह काफी कम है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, March 9, 2014, 18:50